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________________ १, २, २. ] [ २३ होंगी। इस संपूर्ण व्यवस्थाको ध्यान में रखकर यह कहा गया है कि जघन्य परीतानन्तके अर्धच्छेदों में उसीकी एक अधिक वर्गशलाकाएं मिला देने पर जघन्य अनन्तानन्तकी वर्गशलाकाएं और जघन्य परीतानन्तकी द्विगुणित अर्धच्छेदशलाकाओं से जघन्य परीतानन्तको गुणित कर देने पर जघन्य अनन्तानन्तकी अर्धच्छेदशलाकाएं होती है । इसीप्रकार वर्गित संवर्गित राशिकी वर्गशलाकाएं और अर्धच्छेद लाने की पद्धतिके अनुसार प्रथम, द्वितीय और तृतीयवार वर्गित संवर्गित राशि के अर्धच्छेद और वर्गशलाकाओंके संबन्ध में भी समझ लेना चाहिये । उदाहरण ( बीजगणित से ) - दवमाणागमे मिच्छाइट्ठिपमाणपरूवणं जघन्य परीतानन्तको वर्गितसंवर्गित करनेसे जघन्य युक्तानन्त उत्पन्न होता है । तथा जघन्य युक्तानन्तके वर्गप्रमाण जघन्य अनन्तानन्त है । २ मान लो जघन्य परीतानन्तका मान २ परीतानन्त की वर्गितसंवर्गित राशि के उपरिम वर्ग प्रमाण जघन्य अनन्तानन्त द्वितीयवार वर्गित संवर्गित अनन्तानन्त प्रथमवार वर्गितसंवर्गित ख २ + ख Jain Education International २ = २ अ ग २ + ग २ = २ = २ २ अ २ + अ + १ २ = २ क २ + क ख २ = २ ( मान लो ) ग २ = २ ( मान लो ) तृतीयवार वर्गित संवर्गित २ संख्यासे लेकर जितनीवार वर्ग करनेसे विवक्षित राशि उत्पन्न होती है उतनी उस वर्ग शिकी वर्गशलाकाएं होती है । जैसे ४ की वर्गशलाका १ और १६ की २ होती हैं, क्योंकि, २ का एकवार वर्ग करनेसे ४ और २ वार वर्ग करनेसे १६ उत्पन्न होते हैं। तथा विवक्षित राशिको जितनीवार आधा आधा करते हुए एक शेष रहे उतने उस राशिके क २ = २ ( मान लो ) २ अर्धच्छेद होते हैं; जैसे १६ के अर्धच्छेद ४ होते हैं । बीजगणित से २ राशिके अ अर्धच्छेद २ होंगे और वर्गशलाका अ होगी । For Private & Personal Use Only अ www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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