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१२] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, २, २. कम्मेसु वा सेलकम्मेसु वा भित्तिकम्मेसु वा गिहकम्मेसु वा मेंडकम्मेसु वा दंतकम्मेसु वा अक्खो वा वराडयो वा जे च अण्णे दुवणाए विदा अणंतमिदि तं सव्वं दृवणाणंतं णाम । जं तं दवाणंतं तं दुविहं आगमदो णोआगमदो य । आगमो गंथो सुदणाणं सिद्धतो पवयणमिदि एगहो । अत्रोपयोगिनः श्लोकाः--
पूर्वापरविरुद्धादेर्व्यपेतो दोषसंहतेः । द्योतकः सर्वभावानामाप्तव्याहृतिरागमः ॥ ९ ॥ आगमो ह्याप्तवचनमाप्तं दोषक्षयं विदुः । त्यक्तदोषोऽनृतं वाक्यं न ब्रूयाद्धत्वसंभवात् ॥ १० ॥ रागाद्वा द्वेषाद्वा मोहाद्वा वाक्यमुच्यते ह्यनृतम् ।
यस्य तु नैते दोषास्तस्यानृतकारणं नास्ति ॥ ११ ॥ तत्थ आगमदो दव्वाणंतं अणंतपाहुडजाणओ अणुवजुत्तो। अवगम्य विस्मृता
भेंडकर्म अथवा दन्तकर्ममें अथवा अक्ष (पासा) हो या कौड़ी हो, अथवा दूसरी कोई वस्तु हो उसमें, यह अनन्त है, इसप्रकारकी स्थापना करना यह सब स्थापनानन्त है।
द्रव्यानन्त आगम और नोआगमके भेदसे दो प्रकारका है। आगम, ग्रन्थ, श्रुतक्षान, सिद्धान्त और प्रवचन ये एकार्थवाची शब्द हैं । इस विषयमें उपयोगी श्लोक हैं
पूर्वापर विरुद्धादि दोषोंके समूहसे रहित और संपूर्ण पदार्थोंके द्योतक आप्तवचनको आगम कहते हैं ॥९॥
___ आप्तके वचनको आगम जानना चाहिये और जिसने जन्म, जरा आदि अठारह दोषोंका नाश कर दिया है उसे आप्त जानना चाहिये । इसप्रकार जो त्यक्तदोष होता है वह असत्यवचन नहीं बोलता है, क्योंकि, उसके असत्यवचन बोलनेका कोई कारण ही संभव नहीं है ॥ १०॥
रागसे, द्वेषसे अथवा मोहसे असत्य वचन बोला जाता है, परंतु जिसके ये रागादि दोष नहीं रहते हैं उसके असत्य वचन बोलनेका कोई कारण भी नहीं पाया जाता है ॥ ११ ॥
अनन्तविषयक शास्त्रको जाननेवाले परंतु वर्तमानमें उसके उपयोगसे रहित जीवको
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चित्तकम्माणि णाम । वत्थेमु पाणसालियकसदादीहिं जाणिदूण किरियाए णिप्पाइचाणि रुवाणि छिपएहि वा कदाणि पोत्तकम्माणि णाम । लेप्पयारेहि लेविऊण जाणि णिप्पाइदाणि रूवाणि ताणि लेप्पकम्माणि णाम | एत्थ रट्टएदि जाणि पत्रदेसु घडिदाणि रूवाणि ताणि लेणकम्माणि णाम । वडइपिंडेण पासादेसु घडिदरूवाणि गिहकम्माणि णाम । तेण चेव कुडेसु घडिदरूवाणि भित्तिकम्माण णाम । दंतिदंतादिसु घडिदरूवाणि दंतकम्माणि णाम । भिंडेहि घडिदरूवाणि भिंडकम्माणि णाम | धवला १२०९.
१ अनु. पत्र १६४. टीका.
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