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षटखंडागमकी प्रस्तावना ९ वंजण
१३ चरित्तमोहणीयस्स उवसामणा.. १० दसणमोहणीयस्स उवसामणा ।
१४ , ,, खवणा। ११ , , खवणा
समत्त
N १५ अद्धापरिमाणणिद्देस । १२ देसविरदी
इस प्राभूतके आगे पीछेका इतिहास संक्षेपमें धवलाकारने इसप्रकार दिया है'एसो अस्थो विउलगिरिमत्थयत्येण पर वक्खीकय-तिकालगोयरछण
णभडारएण गोदमथेरस्स कहिदो । पुणो सो अत्यो आइरियपरंपराए आगंतूग गुणहरभडारयं संपत्तो। पुणो तत्तो आइरियपरंपराए आगंतूग अज्जमंखु-नागहत्थीगं भडारयाणं मूलं पत्तो। पुगो तेहि दोहि यि कमेण जदिवसहभडारयस्स वक्खाणिदो । तेण वि x x सिस्साणुग्गहट्टं चुणिसुत्ते लिहि दो' ।
अर्थात् इस कसायपाहुडका मूल विषय वर्धमान स्वामीने विपुला चलपर गौतम गणधरको कहा। वही आचार्य-परंपरासे गुणधर भट्टारकको प्राप्त हुआ। उनसे आचार्य-परंपराद्वारा वही आर्थमंखु और नागहस्ती आचार्योंके पास आया, जिन्होंने क्रमसे यतिवृषभ भट्टारकको उसका व्याख्यान किया । पतिवृषभने फिर उसपर चर्णिसूत्र रचे ।
गुणधराचार्यकृत गाथारूप कसायपाहुड और यतिवृषभकृत चर्णिसूत्र वीरसेन और जिनसेनाचार्यकृत जयधवलामें प्रथित हैं जिसका परिमाण ६० हजार श्लोक है। इस टीकामें आर्यमंखु और नागहस्थिके अलग अलग व्याख्यानके तथा उच्चारणाचार्यकृत वृत्तिसूत्रके भी अनेक उल्लेख पाये जाते हैं । यतिवृषभके चूर्णिसूत्रोंकी संख्या छह हजार और वृत्तिसूत्रोंकी बारह हजार बताई जाती है।
नंदीसूत्रमें पूर्वोके प्रभेदोंमें पाहुडों और पाहुडिकाओंका भी निम्नप्रकार उल्लेख है, किन्तु उनका विशेष परिचय कुछ नहीं पाया जाता
सेणं अंगट्टयाए बारसमे अंगे एगे सुअखंधे चोद्दस पुवाई, संखेज्जा वत्थू, संखेजा चूलवत्थू, संखेजा पाहुडा, संखेज्जा पाहुडपाहुडा, संखेज्जाओ पाहुडिआओ, संखेज्जाओ पाहुडपाहडि आओ संखेज्जाई पप्पसहस्साइं पयग्गेणं संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा अणंता पज्जवा ' आदि
६. ग्रंथका विषय सत्प्ररूपणाके प्रथम भागमें आचार्य गुणस्थानों और मार्गणास्थानोंका विवरण कर चुके हैं। अब इस भागमें पूर्वोक्त विवरणके आश्रयसे धवलाकार वीरसेन स्वामी उन्हींका विशेष प्ररूपण करते हैं
संपहि संतसुत्तविवरणसमत्ताणतरं तेसिं परूवणं भणिस्सामो। (पृ. ४११)
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