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________________ बारहवें श्रुताङ्ग दृष्टिवादका परिचय ६७ पांचवें पूर्व णाणपवाद (ज्ञानप्रवाद) के एक पाहुडका उद्धार गुणधराचार्यद्वारा गाथारूपमें किया गया । णाणपवादकी बारह वस्तुओंमेंसे दशम वस्तुके तीसरे पाहुडका नाम 'पेज' या 'पेज्जदोस ' या ' कसाय ' पाहुड था । इसीका गुणधराचार्यने १८० गाथाओं ( और ५३ विवरणगाथाओं में ) उद्धार किया, जिसका नाम कसायपाहुड है । इसका परिचय स्वयं सूत्रकार व टीकाकार के शब्दों में संक्षेपतः इसप्रकार है ** * माहासदे असीदे अस्थे पण्णरसधा विहन्त्तम्मि | वोच्छामि सुत्तगाहा जइ गाहा जम्मि अत्थमिम ॥ टीका - सोलसपद सहस्सेहि वे कोडाकोडिएक्स डिलक्ख-सत्तावण्णसहस्स - वेसद-वाणउदिकोटिवासट्ठिलक्ख अट्टसहस्सक्खरूपपणेहि जं भणिदं गणहरदेवेण इंदभूदिणा कसायपाहुडं तमसीदि - सदगाहाहि चेव जाणावेमि ति गाहासदे असीदे त्ति पढमपइजा कदा । तत्थ अणेगेहि अस्थाहियारेहि परूविदं कसायपाहुडमेत्य पण्गारसेहि चैव अत्याहियारेहि परूमि त्ति जाणावणटुं अत्थे पण्णारसधा विहत्तम्मिति विदियपइज्जा कदा | xxx । * * संपहि कसा पाहुडस पण्णारस अत्याहियार- परूवणटुं गुणहरभडारओ दो सुत्तगाहाओ पठदि पेजदोस विहत्ती द्विदि-अणुभागे च बंधगे चेय | वेद एवजोगे विय चउट्ठाण-वियंजणे चे य ॥ सम्मत्त देसविरयी संजम उवसामणा च खवणा च । दंसण-चरितमोहे अद्धापरिमाणणिसो ॥ पुत्रम् पंचमम्मि दु इसमे वत्थुम्मि पाहुडे तदिये । पेज्जं ति पाहुडम्मि दु हवदि कसायाण पाहुडं णाम ॥ १ ॥ * इसका तात्पर्य यह है कि यह कसायपाहुड पंचम पूर्वकी दसम वस्तुके पेजनामक तृतीय पाहुडसे उत्पन्न हुआ है | इन्द्रभूति गौतमकृत उस मूलमंथका परिमाण बहुत भारी था और अधिकार भी अनेक थे । प्रस्तुत कसायपाहुडमें १८० गाथाएं १५ अधिकारों में विभक्त हैं । गाथाओंमें सूचित पन्द्रह अधिकार जयधवलाकारने तीन प्रकारसे बतलाये हैं । इनमें से जो विभाग उन्होंने चूर्णिकार यतिवृषभ के आधारसे दिये हैं, वे निम्नप्रकार हैं- 1 Jain Education International १ पेज्जदोस २ वित्ती-द्विदि- अणुभाग ३ बंधग ( अकर्मबंध ४ संकम कर्मबंध ) बंधग ५ उदय ( कर्मोदय ) ६ उदीरणा ( अकर्मोदय ) ७ उवजोग ८ चउट्ठाण For Private & Personal Use Only 1)} वेदग www.jainelibrary.org
SR No.001396
Book TitleShatkhandagama Pustak 02
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1940
Total Pages568
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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