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बारहवें श्रुताङ्ग दृष्टिवादका परिचय
६५ , पुद्गलोंका तथा पुद्गलके संबन्धसे पुद्गलत्वको
प्राप्त हुए जीवोंका वर्णन करता है । २० णिवत्तमणिधत्त- णिधत्तमणिधत्तमिदि २० निधत्तानिधत्त-निधत्तानिधत्त अर्थाधिकार
अणियोगदार पयाडि--हिदि -अणुभागाणं प्रकृति, स्थिति और अनुभागके निधत्त णिधत्तमणिधत्तं च परूवेदि । णिवत्तमिदि ... और अनिधत्तका प्रतिपादन करता है । किं ? जं पदेसग्गं ण सक्कमुदए दादु जिसमें प्रदेशाग्र उदय अर्थात् उदीरणामें अण्णपयाडं वा संकामेदं तं णिवत्तं णाम । नहीं दिया जा सकता है और अन्य तबिवरीयमणिधत्तं ।
प्रकृतिरूप संक्रमणको भी प्राप्त नहीं कराया जा सकता है, उसे निधत्त कहते
हैं । अनिधत्त इससे विपरीत होता है। २१ णिकाचिदमणिकाचिद--णिकाचिदमणि- २१ निकाचितानिकाचित--निकाचितानिका.
काचिदमिदि अणियोगद्दारं पयडि-हिदि - चित अर्थाधिकार प्रकृति, स्थिति और अनुअणुभागाणं णिकाचणं परूवेदि । णिकाच- भागके निकाचित और अनिकाचितका णमिदि किं ? जं पदेसग्गं ण सक्कमोक- वर्णन करता है । जिसमें प्रदेशाप्रका उत्कड्डिदुमण्णपयडिं संकामेंदुमुदए दातुं वा पण, अपकर्षण, परप्रकृतिसंक्रमण नहीं हो तण्णिकाचिदं णाम । तबिवरीदमणिका- सकता और न वह उदय अथवा उदारणा चिदं।
में ही दिया जा सकता है उसे निकाचित कहते हैं। अनिकाचित इससे विपरीत
होता है। २२ कम्मद्विदि-कम्महिदि त्ति अणियोगद्दार २२ कर्मस्थिति-कर्मस्थिति अनुयोगद्वार संपूर्ण
सव्वकम्माणं सत्तिकम्मट्ठिदिमुक्कड्डणोकड्डण- कर्मोकी शक्तिरूप कर्मस्थितिका और जणिदहिदिंच परूवेदि ।
उत्कर्षण तथा अपकर्षणसे उत्पन्न हुई
कर्मस्थितिका वर्णन करता है। २३ पच्छिमक्खंध-पच्छिमक्खंधेति अणिओग- २३ पश्चिमस्कन्ध-पश्चिमस्कन्ध अर्थाधिकार
द्दार दंड-कपाट-पदर-लोगपूरणाणि तत्थ दण्ड, कपाट, प्रतर और लोकपूरणरूप हिदि-अणुभागखंडयघादणविहाणं जोग- समुद्घातका, इस समुद्वातमें होनेवाले किट्टीओ काऊण जोगणिरोहसरूवं कम्म- स्थितिकांडकघात और अनभागकाण्डकक्खवणविहाणं च परूवेदि ।
घातके विधानका, योगोंकी कृष्टि करके होनेवाले योगनिरोधके खरूपका और. कर्मक्षपणके विधानका वर्णन करता है।
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