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________________ षट्खंडागमकी प्रस्तावना १३ लेस्सा-लेस्सेत्ति अणिओगद्दारं छदव्वले- १३ लेश्या-लेश्या आनुयोगद्वार छह द्रव्य स्साओ परूवेदि । लेश्याओंका प्रतिपादन करता है। १४ लेस्सायम्म-लेस्सापरिणामेत्ति अणियोग- १४ लेश्याकर्म-लेश्याकर्म अर्थाधिकार अन्तरंग हारमंतरंग-छलेस्सा-परिणयजीवाणं बज्झ- छह लेश्याओंसे परिणत जीवोंके बाह्य कज्जपरूपण कुणदि । कार्योंका प्रतिपादन करता है। १५ लेस्सापरिणाम-लेस्सापरिणामेत्ति अणि- १५ लेश्यापरिणाम-लेश्यापरिणाम अर्थाधिकार योगद्दारं जीव-पोग्गलाणं व्व-भावलेस्साहि जीव और पुद्गलोंके द्रव्य और भावरूपसे परिणमणविहाणं वण्णेदि। परिणमन करनेके विधानका कथन करता १६ सादमसाद-सादमसादेत्ति अणियोगद्दारमे. १६ सातासात-सातासात अर्थाधिकार एकान्त यंतसाद-अणेयततोदाणं (?) गदियादि- सात, अनेकान्त सात, एकान्त असात, मग्गणाओ अस्सिदूण परूवणं कुणइ । अनेकान्त असातका गति आदि मार्गणा ओंके आश्रयसे वर्णन करता है। १७ दहिरहस्स-दीहेरहस्सेत्ति अणिओगद्दारं १७ दीर्घहस्व-दीर्घ-हस्व अधिकार प्रकृति, पयडि-हिदि -अणुभाग-पदेसे अस्सिदूण स्थिति, अनुभाग और प्रदेशोंका आश्रय दीहरहस्सत्तं परूवेदि। लेकर दीर्घता और ह्रस्वताका कथन करता है। १८ भवधारणीय-भवधारणीए त्ति अणियोग- १८ भवधारणीय-भवधारणीय अर्थाधिकार, दारं केण कम्मेण णेरइय-तिरिक्ख-मणुस- किस कर्मसे नरकभव प्राप्त होता है, देवभवा धरिज्जति ति परूवेदि । किससे तिर्यचभव, किससे मनुष्यभव और किससे देवभव प्राप्त होता है, इसका कथन करता है। १९ पोग्गलत्त-पोग्गलअत्येत्ति अणिओगद्दारं गह- १९ पुद्गलात्त-पुद्गलार्थ अनुयोगद्वार दण्डादिके णादो अत्ता पोग्गला परिणामदो अत्ता पोग्गला ग्रहण करनेसे आत्त पुद्गलोंका, मिथ्याउवभोगदो अत्ता पोग्गला आहारदो अत्ता त्वादि परिणामोंसे आत पुद्गलोंका, पोग्गला ममत्तीदो अत्ता पोग्गला परिग्गहादो उपभोगसे आत्त पुद्गलोंका, आहारसे आत्त अत्ता पोग्गला त्ति अप्पणिज्जाणप्पणिज्ज- पुद्गलोंका, ममतासे आत्त पुद्गलोंका और पोग्गलाणं पोग्गलाणं संबंधेण पोग्गलत्तं परिग्रहसे आत्त पुद्गलोंका, इसप्रकार पत्तजीवाणं च परूवणं कुणदि । आत्मसात् किये हुए और नहीं किये हुए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001396
Book TitleShatkhandagama Pustak 02
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1940
Total Pages568
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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