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षट्खंडागमकी प्रस्तावना
से किं तं चूलिआओ ? चूलिआओ आइलाणं चउण्हं पुष्वाणं चूलिआ, सेसाई पुग्वाई अचूलिआई, से तं चूलिआओ ।
अर्थात् प्रथम चार पूर्वोकी जो चूलिकाएं बता आये हैं वे ही चूलिकाएं यहां गिन लेना चाहिये । किन्तु यदि ऐसा है तो चूलिकाको पूर्वोका ही भेद रखना था, दृष्टिवादका एक अलग भेद बताकर उसका एक दूसरे भेदके अन्तर्गत निर्देश करनेसे क्या विशेषता आई ! फिर भी टीकाकार यह तो स्पष्ट बतलाते हैं कि दृष्टिवादका जो विषय परिकर्म, सूत्र, पूर्व और अनुयोग में अनुक्त रहा वह चूलिकाओंमें संग्रह किया गया
' इह चूला शिखरमुच्यते, यथा मेरौ चूला । तत्र चूला इव चूला । दृष्टिवादे परिकर्म-सूत्र-पूर्वानुयोगेऽ मुकार्थसंग्रहपरा ग्रंथपद्धतयः । xxx एताश्च सर्वस्यापि दृष्टिवादस्योपरि किल स्थापितास्तथैव च पज्यन्ते । ' (नन्दी सूत्र टीका)
इससे तो जान पडता है कि उन्हें पूर्वोके भीतर बतलाने में कुछ गड़बड़ी हुई है ।
दिगम्बर मान्यतामें पूर्वोके भीतर कोई चूलिकाएं नहीं दिखाई गई । उसके जो पांच प्रभेद बतलाये गये हैं उनका प्रथम चार पूर्वोसे विषयका भी कोई सम्बंध नहीं है । वे जल, थल, माया, रूप और आकाश सम्बंधी इन्द्रजाल और मंत्र-तंत्रात्मक चमत्कारका प्ररूपण करती हैं, तथा अन्तिम पांच पूर्वोके मंत्रतंत्रात्मक विषयकी धाराको लिये हुए हैं । प्रत्येक चूलिकाकी पदसंख्या २०९८९२०० बतलाई है, जिससे उनके भारी विस्तारका पता चलता है ।
अब यहां पूर्वोके उन अंशोंका विशेष परिचय कराया जाता है जो धवला जयधवलाके भीतर प्रथित हैं और जिनकी तुलनाकी कोई सामग्री श्वेताम्बरीय उपर्युक्त आगमोंमें नही पायी जाती । इनकी रचना आदिका इतिहास सत्प्ररूपणा प्रथम जिल्दकी भूमिकामें दिया जा चुका है जिसका सारांश यह है कि भगवान् महावीरके पश्चात् क्रमशः अट्ठाईस आचार्य हुए जिनका श्रुतज्ञान धीरे धीरे कम होता गया । ऐसे समय में दो भिन्न भिन्न आचार्योंने दो भिन्न भिन्न पूर्वोके अन्तर्गत एक एक पाहुडका उद्धार किया । घरसेनाचार्यने पुष्पदंत और भूतबलिको जो श्रुत पढ़ाया उसपर से उन्होंने द्वितीय पूर्व आप्रायण के एक पाहुडका उद्धार सूत्ररूपसे किया । आप्रायणीपूर्वके अन्तर्गत निम्न चौदह " वस्तु ' नामक अधिकार थे - पुव्वंत, अवरंत, धुव, अधुव, चयणलद्धी, अधुषम, पणिधिकष्प, अट्ठ, भौम्म, वयादिय, सव्वट्ट, कप्पणिज्जाण, अतीद- सिद्ध-बद्ध और अणागय-सिद्ध-बद्ध ।
हम ऊपर बतला ही आये हैं कि पूर्वोकी प्रत्येक वस्तुमें नियमसे वीस वीस पाहुड रहते थे । अप्रायणी पूर्वी पंचम वस्तु चयनलब्धिके वीस पाहुडोंमें चौथे पाहुडका नाम कम्मपयडी या महाकम्मपयडी अथवा बेयणकसिणपाहुड x था । इसीका उद्धार पुष्पदंत और भूतबलि
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x कम्माणं पयडिसरूवं वण्णेदि, तेण कम्मपयडिपाहुडे ति गुणणामं । वेयणकसिणपाहुडे त्ति वितर विदियं णाममत्थि । वेयणा कम्माणमुदयो तं कसिणं णिरवसेसं वण्णेदि अदो वेयणकसिणपाहुडमिदि एदमवि गुणणाममेव (सं.प. १, पृ. १२४, १२५ )
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