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णमोकार मंत्र आदिकर्ता
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इसप्रकार भेद किया गया है । कल्पसूत्र स्थविरावली में एकको गौतम गोत्रीय और दूसरेको उक्कोसिय गोत्रीय कहा है और उन्हें गुरु-शिष्य बतलाया है । किन्तु अन्य पीछेकी पट्टावलियोंमें उनके बीच कहीं कहीं एक दो नाम और जुड़े हुए पाये जाते हैं । प्रथम अज्जवइरके समयका उल्लेख उनके वीरनिर्वाणके ५८४ वर्षतक जीवित रहनेका मिलता है व अज्ज वइरसेनका उल्लेख वीरनिर्वाणसे ६१७ वर्ष पश्चात्का पाया जाता है । इन दोनों आचार्योंसे पूर्व अज्जमंगुका उल्लेख है, तथा उनके अनन्तर नागहत्यिका । अतः इन चारों आचार्योंका समय निम्न प्रकार पड़ता है
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वीर निर्वाण संवत्
४६७
४९६-५८४
६१७-६२०
६२०-६८९
अज्ज मंगु
अज्ज वइर
अज्ज वइरसेन अज्ज नागहत्थी
अज्ज वर दक्षिणापथको गये, वे दशपूर्खोके पाठी हुए और पदानुसारी थे तथा उन्होंने पंच णमोकार मंत्र का उद्धार किया । नागहत्थी कम्मपयडिमें प्रधान हुए ।
दिगम्बर साहित्योल्लेखों के अनुसार आचार्य पुष्पदन्तने पहले पहले ' कम्मपयडी ' का उद्धार कर सूत्ररचना प्रारंभ की और उसीके प्रारंभ में णमोकार मंत्र रूपी मंगल निबद्ध किया, जो धवलाटीका के कर्ता वीरसेनाचार्य के मतानुसार उनकी मौलिक रचना प्रतीत होती है । अज्जमंखु और नागहत्थि - दोनोंने गुणधराचार्य रचित कसायपाहुडको आचार्य परंपरा से प्राप्तकर यतिवृषभाचार्यको पढ़ाया, और यतिवृषभाचार्यने उसपर चूर्णिसूत्र रचे, ऐसा उल्लेख धवलादि ग्रंथों में मिलता है । यतिवृषभकृत ' तिलोयपण्णत्ति ' में ' वइरजस' नामके आचार्यका उल्लेख मिलता है जो प्रज्ञाश्रमणों में अन्तिम कहे गये हैं । यथा -
पन्हसमणेषु चरिमो वइरजसो णाम । x
आश्चर्य नहीं जो ये अन्तिम प्रज्ञाश्रमण वइरजस ( वज्रयश ) श्वेताम्बर पट्टावलियोंके पदानुसारी बहर (वज्रस्वामी ) ही हों । पदानुसारित्व और प्रज्ञाश्रमणत्व दोनों ऋद्धियोंके नाम हैं और ये दोनों ऋद्धियां एक ही बुद्धि ऋद्धिके उपभेद हैं* । धवलान्तर्गत वेदनाखंड में निबद्ध गौतमस्वामीकृत मंगलाचरणमें इन दोनों ऋद्धियोंके धारक आचार्यों को नमस्कार किया गया है, यथाणमो पदानुसारीणं ॥ ८ ॥ णमो पण्हसमणाणं ॥ १८ ॥
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* संतपरूवणा १, भूमिका पृ. ३०, फुटनोट
* राजवार्तिक पृ. १४३
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