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षट्खंडागमकी प्रस्तावना इसप्रकार इन आचार्योकी दिगम्बर मान्यताका क्रम निम्न प्रकार सूचित होता हैधरसेन
, अन्तिमप्रज्ञाश्रमण
गुणधर
गुणधर
वहरजस पुष्पदन्त भूतबलि
आर्यमंखु नागहत्थी
यतिवृषभ वइरजसका नाम यतिवृषभसे पूर्व ठीक कहां आता है इसका निश्चय नहीं। आर्यमंखु और नागहत्यीके समकालीन होनेकी स्पष्ट सूचना पाई जाती है क्योंकि उन दोनोंने क्रमसे यतिवृषभको कसायपाहुड पढ़ाया था । क्रमसे पढ़ानेसे तथा आर्यमंखुका नाम सदैव पहले लिये जानेसे इतना ही अनुमान होता है कि दोनोमें आर्यमंखु संभवतः जेठे थे। ये दोनों नाम श्वेताम्बर पट्टावलियोंमें कोई १३० वर्षके अन्तरसे दूर पड़ जाते हैं जिससे उनका समकालीनत्व नहीं बनता । किन्तु यह बात विचारणीय है कि श्वेताम्बर पट्टावलियोंमें ये दोनों नाम कहीं पाये जाते हैं और कहीं छोड़ दिये जाते हैं, तथा कहीं उनसे एकका नाम मिलता है दूसरेका नहीं। उदाहरणार्थ, सबसे प्राचीन कल्पसूत्र स्थविरावली' तथा ' पट्टावली सारोद्धार ' में ये दोनों नाम नहीं हैं, और 'गुरु पट्टावली' में आर्यभंगुका नाम है पर नागहत्थीका नहीं है । फिर आर्यमंखु
और नागहथीने जिनका रचा हुआ कसायपाहुड आचार्य-परंपरासे प्राप्त किया था वे गणधराचार्य दिगम्बर उल्लेखोंके अनुसार महावीर स्वामीसे आचार्य-परम्पराकी अट्ठाईस पीढ़ी पश्चात् निर्वाण संवत्की सातवीं शताब्दिमें हुए सूचित होते हैं जब कि श्वेताम्बर पट्टावलियोंमें उन दोनोंमें से एक पांचवीं और दूसरे सातवीं शताब्दिमें पड़ते हैं। इसप्रकार इन सब उल्लेखों परसे निम्न प्रश्न उपस्थित होते हैं:
१. क्या · तिलोय-पण्णत्ति' में उल्लिखित 'वइरंजस' और महानिशीथसूत्रके पदानुसारी ' वइरसामी ' तथा श्वेतांबर पट्टावलियोंके ' अज्ज वइर' एक ही हैं ?
२. 'वइरस्वामीने मूलसूत्रके मध्य पंचमंगलश्रुतस्कंधका उद्धार लिख दिया' इस महानिशीथसूत्रकी सूचनाका तात्पर्य क्या है ? क्या उनकी दक्षिण यात्राका और उनके पंचमंगलसूत्रकी प्राप्तिका कोई सम्बन्ध है ? क्या धवलाकारद्वारा सूचित णमोकार मंत्रके कर्तृत्वका इससे सामञ्जस्य बैठ सकता है ?
३. क्या धवलादिश्रुतमें उल्लिखित आर्यमखु और नागहत्थी तथा श्वेताम्बर पट्टावलियोंके अज्जमंगु और नागहत्थी एक ही हैं ! यदि एक ही हैं, तो एक जगह दोनोंकी समसामयिकता
x देखो पट्टावली समुच्चय ।
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