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णमोकार मंत्रके आदिकर्ता
३७ देवाभिवंदितो दशपूर्वविदामपश्चिमो वज्रशाखोत्पत्तिमूलम् । तथा स भगवान् षण्णवत्यधिकचतुःशत ४९६ वर्षान्ते जातः सन् अष्टौ ८ वर्षाणि गृहे, चतुश्वरवारिंशत् ४४ वर्षाणि व्रते, पत्रिंशत् ३६ वर्षाणि युगप्र. सर्वायरष्टाशीति ८८ वर्षाणि परिपाल्य श्रीवीरात् चतुरशीत्यधिकपंचशत ५८४ वर्षान्ते स्वर्गभाक । श्रीवनस्वामिनो दशपूर्व-चतुर्थ-संहननसंस्थानानां व्युच्छेदः।।
चतुष्कुलसमुत्पत्तिपितामहमहं विभुम् ।
दशपूर्वविधिं वन्दे वज्रस्वामिमुनीश्वरम् ॥ * इस उल्लेखपरसे वइरस्वामीके संबंधमें हमें जो बातें ज्ञात होती हैं वे ये हैं कि उनका जन्म वीरनिर्वाण से ४९६ वर्ष पश्चात् हुआ था और स्वर्गवास ५८४ वर्ष पश्चात् । उन्होंने दक्षिण दिशामें भी विहार किया था तथा वे दशपूर्वियोंमें अपश्चिम थे। वीरवंशावलीमें भी उनके उत्तरदिशासे दक्षिणापथको विहार करनेका उल्लेख किया गया है, और यह भी कहा गया है कि वहांके ' तुंगिया' नामक नगरमें उन्होंने चातुर्मास व्यतीत किया था। वहांसे उन्होंने अपने एक शिष्यको सोपारक पत्तन (गुजरात) में विहार करनेकी भी आज्ञा दी थी। इन उल्लेखोंपरसे उनके पुष्पदन्ताचार्यकी विहारभूमिसे संबन्ध होनेकी सूचना मिलती है।
तपागच्छ पट्टावलीमें वइरस्वामीसे पूर्व आर्यमंगुका उल्लेख आया है जिनका समय नि. सं. ४६७ बतलाया गया है । यथा
___ सप्तषष्टयधिकचतुःशतवर्षे ४६७ आर्यमंगुः । आर्यमंगुका कुछ विशेष परिचय नन्दीसूत्र पट्टावलीमें इसप्रकार आया है। -
भणगं करगं सरगं पभावगं णाण-दसण-गुणाणं ।
वंदामि अजमंगुं सुयसागरपारगं धीरं ॥ २८ ॥ । अर्थात् ज्ञान और दर्शन रूपी गुणोंके वाचक, कारक, धारक और प्रभावक, तथा श्रुतसागरके पारगामी धीर आर्यमंगुकी मैं वन्दना करता हूं। इसके अनन्तर अजधम्म और भगुत्तके उल्लेखके पश्चात् अजवयरका उल्लेख है। इन उल्लेखोंपरसे जान पड़ता है कि ये आर्यमंगु अन्य कोई नहीं, धवला जयधवलामें उल्लिखित आर्यमंखु ही हैं, जिनके विषयमें कहा गया है कि उन्होंने और उनके सहपाठी नागहथीने गुणधराचार्य द्वारा पंचमपूर्व ज्ञानप्रवादसे उद्धार किये हुए कसायपाहुडका अध्ययन किया था और उसे जइवसह ( यतिवृषभाचार्य) को सिखाया था । उक्त नन्दीसूत्र पट्टावलीमें अज्जवयरके अनन्तर अजरक्खिअ और अन्ज नन्दिलखमणके पश्चात् अज्ज नागहत्थी का भी उल्लेख इसप्रकार आया है
* पट्टावली समुच्चय, पृ. ४७. x जैन साहित्य संशोधक १, २, परिशिष्ट, पृ. १४. + पहावली समुच्चय, पृ. १३.
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