________________
णमोकार मंत्र आदिकर्ता
३५
मंगलका प्ररूपण किया है और भूतबलि भट्टारकने उसे वहांसे उठाकर मंगलार्थ यहां वेदनाखंडके आदिमें रख दिया है, इससे इसके निबद्ध - मंगल होने में विरोध आता है । न तो वेदनाखंड महाकर्मप्रकृतिपाहुड है, क्योंकि अवयवको अवयवी माननेमें विरोध आता है । और न भूतबली ही गौतम हैं क्योंकि विकलश्रुतके धारक और धरसेनाचार्य के शिष्य भूतबलिको सकलश्रुतके धारक और वर्धमान स्वामी के शिष्य गौतम माननेमें विरोध उत्पन्न होता है । और कोई प्रकार निबद्ध मंगलवका हेतु हो नहीं सकता ।
आगे टीकाकारने इस मंगलको निबद्धमंगल भी सिद्ध करने का प्रयत्न किया है, पर इसके लिये उन्हें प्रस्तुत ग्रन्थका महाकर्मप्रकृतिपाहुडसे तथा भूतबलिस्वामीका गौतमस्वामीसे बड़ी खींचातानी द्वारा एकत्व स्थापित करना पड़ा है । इससे धवळाकारका यह मत बिलकुल स्पष्ट हो जाता है कि दूसरे के बनाये हुए मंगलको अपने ग्रन्थ में जोड़ देनेसे वह शास्त्र निबद्धमंगल नहीं कहला सकता, निबद्ध - मंगलवकी प्राप्तिके लिये मंगल ग्रन्थकारकी ही मौलिक रचना होना चाहिये । अतएव जब कि धवलाकार जीवद्वाणको णमोकार मन्त्ररूप मंगलके होनेसे निबद्ध - मंगल मानते हैं तब वे स्पष्टतः उस मंगलसूत्रको सूत्रकार पुष्पदन्तकी ही मौलिक रचना स्वीकार करते हैं, वे यह नहीं मानते कि उस मंगल को उन्होंने अन्यत्र कहीं से लिया है । इससे धवलाकार आचार्य वरिसेनका यह मत सिद्ध हुआ कि इस सुप्रसिद्ध णमोकार मंत्र के आदिकर्ता प्रातः स्मरणीय आचार्य पुष्पदन्त ही हैं ।
२
णमोकार मंत्र के संबन्धमें श्वेताम्बर सम्प्रदायकी क्या मान्यता है और उसका पूर्वोक्त मतसे कहां तक सामञ्जस्य या वैषम्य है, इस पर भी यहां कुछ विचार किया जाता है । श्वेताम्बर आगमके अन्तर्गत छह छेदसूत्रोंमेंसे द्वितीय सूत्र ' महानिशीथ ' नामका है । इस सूत्र णमोकार मन्त्र के विषय में निम्न वार्ता पायी जाती है
एवं तु जं पंचमंगलमहासुयक्खंधस्स वक्खाणं तं महया पबंघेणं अनंतगमपजवेहिं सुत्तस्स य पियभूयाहिं णिज्जुत्ति-भास-चुन्नीहिं जहेव अनंत-नाण- दंसणधरेहिं तित्थयरेहिं वक्खाणियं तहेव समास वक्खाणिज्जं तं आसि । अहन्नया कालपरिहाणिदोसेणं ताओ णिज्जुत्ति-भास-चुन्नीओ वुच्छिन्नाओ । इओ य वणं कालेणं समएणं महिड्डिपत्ते पयाणुसारी वइरसामी नाम दुवालसंगसुअहरे समुपने । तेण य पंचमंगल- महासुयक्खंधस्स उद्धारो मूलसुत्तस्स मज्झे लिहिओ । मूलसुतं पुण सुत्तत्ताए गणहरेहिं अत्यत्ताए अरिहंतेहिं भगवंतेहिं धम्मतित्थयरेहिं तिलोगमहिएहिं वीरजिनिंदेहिं पन्नवियं ति एस वुडसंपयाओ । ( महानिशीथ सूत्र, अध्याय ५ )
इसका अर्थ यह है कि इस पंचमंगल महाश्रुतस्कंधका व्याख्यान महान प्रबंधसे, अनन्त गम और पर्यायों सहित, सूत्रकी प्रियभूत निर्युक्ति, भाष्य और चूर्णियों द्वारा जैसा अनन्त ज्ञान - दर्शन के
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org