________________
षट्खंडागमकी प्रस्तावना पश्चात् आचार्यको शास्त्रका व्याख्यान करना चाहिये । ' इस आचार्य परम्परागत न्याय को मनमें धारण करके पुष्पदन्ताचार्य मंगलादि छहोंके सकारण प्ररूपणक लिये सूत्र कहते हैं, ' णमो अरिहंताणं ' आदि ।
इसके आगे धवलाकारने इसी मंगलसूत्रको 'तालपलंब' सूत्रके समान देशामर्षक बतलाकर पूर्वोक्त मंगल, निमित्त आदि छहों का प्ररूपक सिद्ध किया है । तत्पश्चात् मंगल शब्दकी व्युत्पत्ति व अनेक दृष्टियोंसे भेद प्रभेद बतलाते हुए मंगलके दो भेद इसप्रकार किये हैं
तच मंगलं दुविहं णिबद्धमणिबद्धमिदि । तत्थ णिबद्धं णाम जो सुत्तस्सादीए सुत्त कत्तारेण णिबद्धदेवदा-णमोकारो तं णिबद्ध-मंगलं । जो सुत्तस्सादीए सुतकत्तारण कयदेवदाणमोकारो तमणिबद्ध-मंगलं । इदं पुण जीवट्ठाणं णिबद्ध-मंगलं, यत्तो 'इमेसिं चोद्दसण्हं जीवसमाणं' इदि एदस्स सुत्तस्सादीए णिबद्ध-णमो अरिहंताणं' इच्चादिदेवदा-णमोकारदंसणादो।
(सं० प० १, पृ० ४१) अर्थात् मंगल दो प्रकारका है, निबद्ध और अनिबद्ध । सूत्रके आदिमें सूत्रकर्ता द्वारा जो देवता-नमस्कार निबद्ध किया जाय वह निबद्ध मंगल है और जो सूत्रके आदिमें सूत्रकर्ता द्वारा देवताको नमस्कार किया जाता है (किन्तु वह नमस्कार लिपिबद्ध नहीं किया जाता) वह अनिबद्ध-मंगल है। यह जीवट्ठाणं निबद्ध मंगल है, क्योंकि इसके 'इमेसिं चोदसण्हं' आदिसूत्रके पूर्व ' णमो अरिहंताणं' इत्यादि देवतानमस्कार पाया जाता है ।
इससे यह सिद्ध हुआ कि जीवट्ठाणके आदिमें जो यह णमोकार मंत्र पाया जाता है वह सूत्रकार पुष्पदन्त आचार्य द्वारा ही वहां रखा गया है और इससे उस शास्त्रको निबद्ध-मंगल संज्ञा प्राप्त हो जाती है। किन्तु इससे यह स्पष्ट ज्ञात नहीं होता कि यह मंगलसूत्र स्वयं पुष्पदन्ताचार्यने रचकर यहां निबद्ध किया है, या कहीं अन्यत्र से लेकर यहां रख दिया है । पर अन्यत्र धवलाकार ने इसका भी निर्णय किया है।
वेदनाखंडके आदिमें ‘णमो जिणाणं' आदि मंगलसूत्र पाये जाते हैं, जिनकी टीका करते हुए धवलाकारने उनके निबद्ध अनिबद्ध स्वरूप का विवेचन किया है । वे लिखते है--
तत्थेदं किं णिबद्धमाहो अणिबद्धमिदि ? ण ताव णिबद्ध-मंगलमिदं, महाकम्मपयडिपाहुडस्स कदियादि-चउवीस-अणियोगावयवस्स आदीए गोदमसामिणा परूविदस्स भूदबलिभडारएण वेयणाखंडस्स आदीए मंगलटुं तत्तो आणेदूण ठविदस्स णिबद्धत्त-विरोहादो। ण च बेयणाखंडं महाकम्मपयडिपाहुडं अवयवस्स अवयवित्तविरोहादो । ण च भूदबली गोदमो, विगलसुदधारयस्स धरसेणाइरियसीसस्स
गंतेवासि-गोदमत्तविरोहादो। ण चाण्गो पयारो णिबद्धमंगलत्तस्स हेदुभूदो अस्थि ।
अर्थात् यह मंगल (णमो जिणाणं, आदि) निबद्ध है या अनिबद्ध ! यह निबद्ध-मंगल तो नहीं है क्योंकि महाकर्मप्रकृतिपाहुडके कृति आदि चौवीस अनुयोगद्वारोंके आदिमें गौतमस्वामीने इस
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org