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________________ ५९८] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, १. समासा पण्णारस एवमेदे सव्वे वि पंचेदालीस जीवसमाला हवंति । पुढवि-आउ-तेउ-वाउसाधारणसरीरवणप्फइकाइया पत्तेयं पत्तेयं बादर-सुहुमपज्जत्तापज्जत्तभेदेण चउबिहा हवंति, पत्तेयसरीरा वेइंदिय-तेइंदिय-चउरिंदिय-असण्णिपंचिंदिय-सण्णिपंचिंदिया पत्तेयं पत्तेयं पज्जत्ता अपज्जत्ता दुविहा हवंति एदे सव्वे मिलिदे वत्तीस जविसमासा हवंति । सोलस णिव्वत्तिपज्जत्तजीवसमासा सोलस णिव्यत्ति-अपज्जत्तजीवसमासा सोलस लद्धि-अपजत्तजीवसमासा च मेलिदे अट्ठतालीस जीवसमासा हवंति । वत्तीस-जीवसमासेसु पत्तेयसरीरदो-जीवसमासे अवणिय पत्तेयसरीरा दुविहा बादरणिगोदजोणिणो तेसिमजोणिणो चेदि, ते च पत्तेयं पज्जत्तापज्जत्तभेदेण दुविहा एदे चत्तारि पक्खित्ते चोत्तीस जीवसमासा हवंति। सत्तारस णिव्यत्तिपज्जत्ता सत्तारस णिव्यत्ति-अपज्जत्ता सत्तारस लद्धि-अपज्जत्ता एदे सव्वे एकावण जीवसमासा हवंति। पुढवि-आउ-तेउ-बाउ-णिचणिगोद-चउगदिणिगोदा बादरा इसप्रकार ये सब मिलाकर पैंतालीस जीवसमास होते हैं। पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और साधारणशरीरवनस्पतिकायिक ये पांच प्रकारके जीव पृथक् पृथक् बादर, सूक्ष्म और उनमें भी पर्याप्तक और अपर्याप्तक इसप्रकार चार चार प्रकारके होते हैं। प्रत्येकशरीरवनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंही पंचेन्द्रिय और संज्ञी पंचेन्द्रिय ये छहों प्रत्येक प्रत्येक पर्याप्तक और अपर्याप्तकके भेदसे दो दो प्रकारके होते हैं। इसप्रकार ये सब मिलाने पर बत्तीस जीवसमास होते हैं। पृथिवीकायिक जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और साधारणशरीर-वनस्पतिकायिक जीवोंके बादर और सूक्ष्मके भेदसे वश भेदरूप तथा प्रत्येकशरीर वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंत्री-पंचेन्द्रिय और संशी-पंचेन्द्रिय जीवोंकी अपेक्षा सोलह निर्वृत्तिपर्याप्तक जीवसमास, सोलह निर्वृत्यपर्याप्तक जीवसमास और सोलह लब्ध्यपर्याप्तक जीवसमास इसप्रकार ये सब मिला देने पर अड़तालीस जीवसमास होते हैं। पूर्वोक्त बत्तीस जीवसमासों से प्रत्येकशरीरसंबन्धी पर्याप्तक और अपर्याप्तक ये दो जीवसमास निकाल कर प्रत्येकशरीरवनस्पतिकायिक जीव दो प्रकारके होते हैं, बादरनिगोदयोनिक (प्रतिष्ठित) और बादरनिगोद अप्रतिष्ठित । वे दोनों पर्याप्तक और अपर्याप्तकके भेदसे दो दो प्रकारके होते हैं। ये चार जीवसमास मिला देने पर चौतीस जीवसमास होते हैं । पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, और साधारणवनस्पतिकायिकके बादर और सूक्ष्मके भेदसे दश भेदरूप तथा सप्रतिष्ठित प्रत्येक-वनस्पतिकायिक, अप्रतिष्ठितप्रत्येक-वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंशिकपंचेन्द्रिय और संक्षिकपंचेन्द्रिय जीवोंको अपेक्षा सत्रह निर्वृत्तिपर्याप्तक जीवसमास, सत्रह निर्वृत्यपर्याप्तक जीवसमास और सत्रह लब्ध्यपर्याप्तक जीवसमास ये सब मिलाकर इकावन जीवसमास होते हैं। पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, नित्यनिगोद. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001396
Book TitleShatkhandagama Pustak 02
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1940
Total Pages568
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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