SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 292
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १, १.] संत-परूवणाणुयोगद्दारे काय-आलाववण्णणं [ ५९९ सुहुमा च पज्जत्तापज्जत्तभेएण दुविहा हवंति, पत्तेयवणप्फदि-इंदिय-तेइंदिय-चउरिंदियअसण्णि-सण्णि पंचिंदिय-पजत्तापजत्तभेएण एदे वि पत्तेयं दुविहा हवंति एदे सव्वे वि छत्तीस जीवसमासा हवंति । अहारह णिव्यत्तिपजत्तजीवसमासा, तेत्तिया चेव णिव्यत्तिअपजत्तजीवसमासा वि अट्ठारह, लद्धि-अपज्जत्तजीवसमासा वि अट्ठारह सव्वेदे एगट्टे कदे चउपण्ण जीवसमासा । पुणो पत्तेयसरीर-दो-जीवसमासे छत्तीस-जीवसमासेसु अवणिय पत्तेयसरीरबादरणिगोद-पदिदिदापदिहिद'-पज्जत्तापञ्जत्त-सण्णिद-चदुसु जीवसमासेसु पक्खि. त्तेसु अदृत्तीस जीवसमासा हवति । एत्थ एगुणवीस णिव्यत्तिपज्जत्तजीवसमासा, तेत्तिया चेव णिव्यत्ति-अपजत्तजीवसमामा हवंति, लद्धि-अपज्जत्तजीवसमासा वि तेत्तिया साधारणवनस्पतिकायिक और चतुर्गतिनिगोदसाधारणवनस्पतिकायिक ये छहों प्रकारके जीव बादर और सूक्ष्मके भेदसे बारह प्रकारके होते हैं। और वे प्रत्येक पर्याप्तक और अपर्याप्तकके भेदसे दो दो प्रकारके होते हैं। प्रत्येकवनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंही-पंचेन्द्रिय और संशी-पंचेन्द्रिय जीव ये सभी पर्याप्तक और अपर्याप्तकके भेदसे दो दो प्रकारके होते हैं। इसप्रकार उक्त चौबीस और निम्न बारह ये सभी जीवसमास मिलाकर छत्तीस जीवसमास होते हैं। पृथिवीकायिक, जलकायिक, तैजस्कायिक, वायुकायिक, नित्यनिगोद साधारणवनस्पतिकायिक और चतुर्गतिनिगोद साधारणवनस्पतिकायिकके बादर और सूक्ष्म भेद, प्रत्येकवनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंशी-पंचेन्द्रिय और संशी-पंचेन्द्रिय जीवोंकी अपेक्षा अठारह निर्वृत्तिपर्याप्तक जीवसमास, उतने ही अठारह निर्वृत्यपर्याप्तक जीवसमास और अठारह लब्ध्यपर्याप्तक जीवसमास ये सब इकडे करने पर चौपन जीवसमास होते हैं। पूर्वोक्त छत्तीस जीवसमासों से प्रत्येकशरीरसंबन्धी पर्याप्तक और अपर्या प्तक ये दो जीवसमास निकाल कर प्रत्येकशरीरसंबन्धी बादरनिगोद प्रतिष्ठित और भप्रतिष्ठित इन दोनोंके पर्याप्तक और अपर्याप्तक इन चार जीवसमासोंके मिलाने पर अड़तीस जीवसमास होते हैं। पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, नित्यनिगोद साधारणशरीरवनस्पतिकायिक और चतुर्गतिनिगोद साधारणशरीरवनस्पतिकायिक जीवोंके बादर और सूक्ष्म भेदरूप तथा सप्रतिष्ठित प्रत्येकवनस्पतिकायिक, अप्रतिष्ठित प्रत्येकवनस्पतिकायिक द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंही-पंचेन्द्रिय और संशी-पंचेन्द्रिय जीवोंसंबन्धी उन्नीस निर्वृत्तिपर्याप्तक जीवसमास होते हैं, उन्नीस ही निवृत्यपर्याप्तक जीवसमास होते हैं और उन्नीस ही लब्ध्यपर्याप्तक जीवसमास होते हैं। ये सब मिलाकर सत्तावन जीवसमास होते १ प्रतिषु · पदिविद-पज्जना-' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001396
Book TitleShatkhandagama Pustak 02
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1940
Total Pages568
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy