________________
( ६७ )
धवला में जहां वर्गणाखंड समाप्त हुआ है वहां सूचना की गई है कि
' जं तं बंधविहाणं तं चउन्विहं पयडिबंधो द्विदिबंधो अणुभागबंधी पदे बंधो चेदि । देसि चदुहं बंधाणं विहाणं भूदबलि भडारएण महाबंधे सप्पधंचेण लिहिदं ति अम्हेहि एत्थ ण लिहिदं । तदो सयले महाबंधे एत्थ परूविदे बंधविहाणं समप्पदि' । (धवला क. १२५९-१२६०)
अर्थात् बंधविधान चार प्रकारका है, प्रकृतिबंध, स्थितिबंध, अनुभागबंध और प्रदेशबंध । इन चारों प्रकारके बंधोंका विधान भूतबलि भट्टारकने महाबंध में सविस्तररूपसे लिखा है, इस कारण हमने ( वीरसेनाचार्यने ) उसे यहां नहीं लिखा । इसप्रकार से समस्त महाबंध के यहां प्ररूपण हो जाने पर बंधविधान समाप्त होता है ।
ऐसा ही एक उल्लेख जयधवलामें भी पाया जाता है जहां कहा गया है कि प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश बंधका वर्णन विस्तार से महाबंध में प्ररूपित है और उसे वहांसे देख लेना चाहिये, क्योंकि, जो बात प्रकाशित हो चुकी है उसे पुनः प्रकाशित करनेमें कोई फल नहीं । यथा
सो पुण पयडिट्ठिदिअणुभागपदेसबंध बहुसो परूविदो । ( चूर्णिसूत्र ) । सो उण गाहाए पुग्वद्धम्म णिलीणो पयडिट्टिदि - अणुभाग - पदेस - विसओ बंधो बहुसो गंयंतरेसु परूविदो त्ति तत्व विथ दो, ण एत्थ पुणो परूविज्जदे, पयासियपयासणे फलविसेसाणुवलंभादो । तदो महाबंधाणुसारेणेत्थ पयडि-ट्टिदि-अणुभाग-पदे सबंधेसु विहासियसमत्तेसु तदो बंधो समत्तो होई । जयध. अ. ५४८ इससे इन्द्रनन्दिके कथन की पुष्टि होती है कि छठवां खंड स्वयं भूतबलि आचार्यद्वारा रचित सविस्तर पुस्तकारूढ़ है ।
किंतु इन्द्रनन्दिने श्रुतावतार में आगे चलकर कहा है कि वीरसेनाचार्यने एलाचार्यसे सिद्धान्त सीखने के अनन्तर निबन्धनादि अठारह अधिकारोंद्वारा सत्कर्म नामक सत्कर्म- पाहुड छठवें खंडका संक्षेपसे विधान किया और इसप्रकार छहों खंडोंकी बहत्तर हजार ग्रंथप्रमाण वा टीका रची गई । (देखो ऊपर पृ. ३८)
धवलामें वर्गणाखंडकी समाप्ति तथा उपर्युक्त भूतबलिकृत महाबंधकी सूचनाके पश्चात् निबंधन, प्रक्रम, उपक्रम, उदय, मोक्ष, संक्रम, लेश्या, लेश्याकर्म, लेश्यापरिणाम, सातासात, दीर्घ-हस्व, भवधारणीय, पुद्गलात्म, निधत-अनिधत्त, निकाचित-अनिकाचित, कर्मस्थिति, पश्चिमस्कंध और अल्पबहुत्व, इन अठारह अनुयोगद्वारोंका कथन किया गया है और इस समस्त भागको चूलिका है । यथा-
कहा
तो उवरिम - गंथो चूलिया णाम ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org