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________________ (६३) ' सा कम्मपवादे सवित्थरेण परूविदा ' ( धवला अ. १३७१.) जयधवलामें एक स्थानपर दशकरणीसंग्रहका उल्लेख आया है । यथा ..."शुष्ककुड्यपतितसिकतामुष्टिवदनन्तरसमये निर्वर्तते कर्मेर्यापथं वीतरागाणामिति । दसकरणीसंगहे पुण पयडिबंधसंभवमेत्तमवेक्खिय वेदणीयस्स वीयरायगुणहाणेसु वि बंधणाकरणमोवट्टणाकरणं च दो वि भणिदाणि त्ति । जयध० अ. १०४२. इस अवतरणपरसे इस ग्रंथमें कोंकी बन्ध, उदय, संक्रमण आदि दश अवस्थाओंका वर्णन है ऐसा प्रतीत होता है। ये थोडेसे ऐसे उल्लेख हैं जो धवला और जयधवलापर एक स्थूल दृष्टि डालनेसे प्राप्त हुए हैं। हमें विश्वास है कि इन ग्रंथोंके सूक्ष्म अवलोकनसे जैन धार्मिक और साहित्यिक इतिहासके सम्बंध बहुतसी नई बातें ज्ञात होगी जिनसे अनेक साहित्यिक ग्रंथियां सुलझ सकेंगी। १०. पखंडागमका परिचय पुष्पदन्त और भूतबलिद्वारा जो ग्रंथ रचा गया उसका नाम क्या था ? स्वयं सूत्रोंमें तो ग्रंथ नाम ..प्रथका कोई नाम हमारे देखनेमें नहीं आया, किंतु धवलाकारने ग्रंथकी उत्थानिकामें "' ग्रंथके मंगल, निमित्त, हेतु, परिमाण, नाम और कर्ता, इन छह ज्ञातव्य बातोंका परिचय कराया है। वहां इसे 'खंडसिद्धान्त ' कहा है और इसके खंडोंकी संख्या छह बतलाई है। इस प्रकार धवलाकारने इस ग्रंथका नाम 'षट्खंड सिद्धान्त ' प्रकट किया है। उन्होंने यह भी कहा है कि सिद्धान्त और आगम एकार्थवाची हैं। धवलाकारके पश्चात् इन ग्रंथोंकी प्रसिद्धि आगम परमागम व षट्खंडागम नामसे ही विशेषतः हुई । अपभ्रंश महापुराणके कर्ता पुष्पदन्तने धवल और जयधवलको आगम सिद्धान्त, गोम्मटसारके टीकाकारने परमागम १ तदो एयं खंडसिद्धतं पडुच्च भूदबलि-पुप्फयंताइरिया वि कत्तारो उच्चति । ( पृ. ७१) इदं पुण जीवट्ठाणं खंडसिद्धतं पहुच्च पुव्वाणुपुवीए द्विदं छण्हं खंडाणं पढमखंडं जीवट्ठाणामिदि। (पृ. ७४) २ आगमो सिद्धंतो पवयणमिदि एयहो। (प. २०.) आगमः सिद्धान्तः । (पृ. २९.) __ कृतान्तागम-सिद्धान्त-ग्रंथाः शास्त्रमतः परम् ॥ (धनंजय--नाममाला ४) ३ ण उ बुज्झिउ आयमु सद्दधामु | सिद्धंतु धवलु जयधवलु णाम ॥ (महापु. १, ९, ८.) ४ एवं विंशतिसंख्या गुणस्थानादयः प्ररूपणाः भगवदहद्दणधरशिष्य-प्रशिष्यादिगुरुपर्वागतया परिपाट्या अनुक्रमेण भणिताः परमागमे पूर्वाचायः प्रतिपादिताः (गो. जी. टी. २१.) परमागमे निगोदजीवानां द्वैविध्यस्य सुप्रसिद्धत्वात् । (गो. जी. टी. ४४२.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001395
Book TitleShatkhandagama Pustak 01
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1939
Total Pages560
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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