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________________ आचार्योद्वारा भी हो चुके थे । और यह स्वाभाविक ही है, क्योंकि, उनके उल्लेखोंसे ज्ञात होता है कि सूत्रोंका अध्ययन कई प्रकारसे चला करता था जिसके अनुसार कोई सूत्राचार्य थे,' कोई उच्चारणाचार्य, कोई निक्षेपाचार्य और कोई व्याख्यानाचार्य । इनसे भी ऊपर 'महावाचकोंका' पद ज्ञात होता है । कषायप्राइतके प्रकाण्ड ज्ञाता आर्यमक्षु और नागहस्तिको अनेक जगह महावाचक कहा है। आर्यनन्दिका भी महावाचकरूपसे एक जगह उल्लेख है । संभवतः ये स्वयं वीरसेनके गुरु थे जिनका उल्लेख धवलाको प्रशस्तिमें भी किया गया है। धवलाकारने कई जगह ऐसे प्रसंग भी उठाये हैं जहां सूत्रोंपर इन आचार्योंका कोई मत उपलब्ध नहीं था । इनका निर्णय उन्होंने अपने गुरुके उपदेशके बल पर व परंपरागत उपदेशद्वारा तथा सूत्रोंसे अविरुद्ध अन्य आचायोंके वचनोंद्वारा किया है। धवला पत्र १०३६ पर तथा जयधवलाके मंगलाचरणमें कहा गया है कि गुणधराचार्य विरचित कषायप्राभृत आचार्यपरंपरासे आर्यमा और नागहस्ति आचार्योको प्राप्त हुआ और उनसे सीखकर यतिवृषभने उनपर वृत्तिसूत्र रचे । वीरसेन और जिनसेनके सन्मुख, जान पड़ता है, उन दोनों आचायोंके अलग अलग व्याख्यान प्रस्तुत थे क्योंकि उन्होंने अनेक जगह उन दोनोंके १ सुत्ताइरिय-वक्खाण-पसिद्धो उवलब्भदे । तम्हा तेसु सुत्ताइरिय वक्खाण-पसिद्धेण, ध. २९४. २ एसो उच्चारणाइरिय-अभिप्पाओ। धवला अ. ७६४. एदेसिमणियोगद्दाराणमुच्चारणाइरियोवएसबलेण परूवणं वत्तइस्सामो । जयध. अ. ८४२. ३ णिक्खेवाइरिय-परूविद-गाहाणमत्थं भणिस्सामो । धवला. अ. ८६३. ४ वक्खाणाइरिय-परूविदं वत्तइस्सामो । धवला. अ. १२३५. वक्खाणाइरियाणमभावादो । धवला. अ. ३४८. ५ महावाचयाणमज्जमखुसमणाणमुवदेसेण ... ... .."महावाचयाणमज्जणंदोणं उवदेसेण । धवला. अ. १४५७. महावाचया अज्जिणंदिणो संतकम्मं करेंति | हिदिसंतकम्मं पयासति | धवला. अ. १४५८. अज्जमखुणागहत्थि-महावाचय-मुहकमल-विणिग्गएण सम्मत्तस्स । जयध. अ. ९७३. ६ कधमेदं णव्वदे ? गुरूवदेसादो । धवला. अ. ३१२ ७ सुत्ताभावे सत्त चेव खंडाणि कीरति ति कधं णव्वदे ? ण, आइरिय-परंपरागदुवदेसादो। धवला. अ. ५९२. ८ कुदो णव्वदे ? अविरुद्धाइरियवयणादो सुत्त-समाणादो। धवला. अ. १२५७. सुत्तेण विणा ....... कुदो णव्वदे ? सुत्तविरुद्धाइरियवयणादो। धवला. अ. १३३७. Jairi Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001395
Book TitleShatkhandagama Pustak 01
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1939
Total Pages560
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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