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________________ (५४) उल्लेख किया है और एक स्थलपर उसके कथनसे विरोध बताकर उसका समाधान किया है, तथा उसकी सात गाथाओंको उद्धृत किया है। उन्होंने अकलंकदेवकृत तत्वार्थराजवार्तिकका 'तत्वार्थभाष्य ' नामसे उल्लेख किया है और उसके अनेक अवतरण कहीं शब्दशः और कहीं कुछ पार - वर्तनके साथ दिये हैं। इनके सिवाय उन्होंने जो २१६ संस्कृत व प्राकृत पद्य बहुधा ' उक्तं च' कहकर और कहीं कहीं विना ऐसी सूचनाके उद्धृत किये हैं उनमें से हमें ६ कुन्दकुन्दकृत प्रवचनसार, पंचास्तिकाय व उसकी जयसेनकृत टीकामे', ७ तिलोयपण्णत्तिमें, १२ वट्टकेरकृत मूलाचारमें', १ अकलंकदेवकृत लघीयत्रयीमें, २ मूलाराधनामें, ५ वसुनन्दिश्रावकाचारमें, १ प्रभाचन्द्रकृत शाकटायन-न्यासमें , १ देवसनकृत नयचक्रमें', व १ विद्यानन्दकृत आप्तपरीक्षामें मिले हैं। गोम्मटसार जीवकाण्ड, कर्मकाण्ड, व जीवप्रबोधनी टीकामें इसकी ११० गाथाएं पाई गईं हैं जो स्पष्टतः वहांपर यहींसे ली गई हैं। कई जगह तिलोयपण्णत्तिकी गाथाओंके विषयका उन्हीं शब्दोंमें संस्कृत पद्य अथवा गधद्वारा वर्णन किया है व यतिवृषभाचार्यके मतका भी यहाँ उल्लेख आया है । इनके अतिरिक्त इन गाथाओंमेंसे अनेक श्वेताम्बर साहित्यमें भी मिली हैं । सन्मतितर्ककी सात गाथाओंका हम ऊपर उल्लेख कर ही आये हैं। उनके सिवाय हमें ५ गाथाएं आचारांगमें, १ बृहत्कल्पसूत्रमें", ३ दशवैकालिकसूत्रमें', १ स्थनांगटीकामे, १ अनुयोगद्वारमें" व २ आवश्यक-नियुक्तिमें मिली हैं । इसके अतिरिक्त और विशेष खोज करनेसे दिगम्बर और श्वेताम्बर साहित्यमें प्रायः सभी गाथाओंके पाये जानेकी संभावना है। किंतु वीरसेनाचार्यके सन्मस्व उपस्थित साहित्यकी विशालताको समझने के लिये उनकी . समस्त रचना अर्थात् धवला और जयधवलापर कमसे कम एक विहंग-दृष्टि डालना आवश्यक है । यह तो कहनेकी आवश्यकता नहीं है कि उनके पाठभेद व मतभेद, ५ सन्मुख पुष्पदन्त, भूतबलि व गुणधर आचार्यकृत पूरा सूत्र-साहित्य प्रस्तुत १ पृ. १५ व गाथा नं. ५, ६, ७, ८, ९, ६७, ६९. २ पृ. १०३, २२६, २३२ २३४, २३९. ३ गाथा न. १ १३, ४६, ७२, ७३ १९८. . ४ गाथा नं. २० ३५, ३७, ५५, ५६, ६.. ५ गाथा नं. १८, ३१ (पाठभेद ) ६५ (पाठभेद ) ७०, ७१, १३४, १४७, १४८, १४९, १५०, १५१, १५२.६ गाथा नं. ११.७ गाथा नं. १६७, १६८. ८ गाथा नं. ५८, १६७, १६८,३०, ७४, ९ गाथा नं. २. १० गाथा नं. १०. ११ गाथा नं. २२. १२ देखो पृ. १०, २८, २९, ३२, ३३, आदि. १३ देखो पृ. ३०२. १४ गाथा नं. १४, १४९, १५०, १५१, १५२ ( पाठभेद ). १५ गाथा नं. ६२. १६ गाथा नं. ३४, ७०, ७१. १७ गाथा नं, ८८.१८ गाथा नं. १४. १९ गाथा न. ६८, १००. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001395
Book TitleShatkhandagama Pustak 01
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1939
Total Pages560
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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