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इन दोनों अबतरणोंके मिलानसे स्पष्ट है कि धवलामें आया हुआ उल्लेख नियमसारसे भिन्न है, फिर भी दोनोंकी रचना में एक ही हाथ सुस्पष्टरूपसे दिखाई देता है । इन सब प्रमाणोंसे कुन्दकुन्दकृत परिकर्म के अस्तित्वमें बहुत कम सन्देह रह जाता है ।
(४८)
इसका कुन्दकुन्द के नियमसारकी इस गाथासे मिलान कीजिये ----
अन्तादि अन्तम अस्तंतं णेव इंदिए गे
।
अविभागी जं दव्वं परमाणू तं विआणाहि ॥ २६ ॥
धवलाकारने एक स्थानपर ' परिकर्म' का सूत्र कह कर उल्लेख किया है । यथा-'रूवाहियाणि त्ति परियम्मसुत्तेण सह विरुज्झइ ' ( धवला अ. पृ. १४३ ) । बहुधा वृत्तिरूप जो व्याख्या होती है उसे सूत्र भी कहते हैं । जयधवला में यतिवृषभाचार्यको ' कषायप्राभृत ' का ' वृत्तिसूत्रकर्ता ' कहा है। यथा-
' सो वित्तियुत्तकत्ता जइवसहो मे वरं देऊ ' ( जयध० मंगलाचरण गा. ८ )
इससे जान पड़ता है कि परिकर्म नामक व्याख्यान वृत्तिरूप था । इन्द्रनन्दिन परिकर्मको
ग्रंथ कहा है । वैजयन्ती कोषके अनुसार ग्रंथ वृत्तिका एक पर्याय वाचक नाम है । यथा-
वृत्तिर्ग्रन्थजीवनयोः । वृत्ति उसे कहते हैं जिसमें सूत्रोंका ही विवरण हो, शब्द रचना संक्षिप्त हो और फिर भी सूत्र के समस्त अर्थोंका जिसमें संग्रह हो । यथा-
सुत्तस्सेव विवरणाए संखित्त -सद्द - रयणाए संगहिय- सुत्तासेसत्थाए वित्तसुत्त ववएसादो । ( जयध० अ. ५२. )
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इन्द्रनन्दिने दूसरी जिस टकिका उल्लेख किया है, वह शामकुंड नामक आचार्य-कृत . थी । यह टीका छठवें खण्डको छोड़कर प्रथम पांच खण्डोंपर तथा दूसरे सिद्धान्त२ शामकुंडकृत ग्रंथ ( कषायप्राभृत) पर भी थी । यह टीका पद्धति रूप थी । वृत्तिसूत्रके विषम-पदोंका भंजन अर्थात् विश्लेषणात्मक विवरणको पद्धति कहते हैं। यथा-वित्तिसुत्त-विसम-पयाभंजिए विवरणाए पढइ बवएसादो ( जयध. पृ. ५२ )
पद्धति
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जिनकी उन्होंने पद्धति
इससे स्पष्ट है कि शामकुंडके सन्मुख कोई वृत्तिसूत्र रहे हैं लिखी । हम ऊपर कह ही आये हैं किं कुन्दकुन्दकृत परिकर्म संभवतः शामकुंडने उसी वृत्तिपर और उधर कषायप्राभृतकी यतिवृषभाचार्यकृत वृत्तिपर अपनी पद्धति
वृत्तिरूप ग्रंथ था । अतः
लिखी ।
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