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________________ (३६) अज्जज्जणंदिसिस्सेणुज्जुव-कम्मरस चंदसेणस्स । तह णत्तवेण पंचत्थुहण्यंभाणुणा मुणिणा ॥ ४ ॥ सिद्धत-छंद-जोइस-वायरण-पमाण-सत्थ-णिवुणेण । भट्टारएण टीका लिहिएसा वीरसेणेण ॥ ५ ॥ अहतीसम्हि सासिय विक्कमरायम्हि एसु संगरमो । (१) पासे सुतेरसीए भाव-विलग्गे धवल-पक्खे ॥ ६ ॥ जगतुंगदेवरज्जे रियम्हि कुंभम्हि राहुणा कोणे । सूरे तुलाए संते गुरुम्हि कुलविल्लए होते ॥ ७ ॥ चावम्हि वरणिवुत्ते सिंधे सुक्कम्मि णेमिचंदम्मि । कत्तियमासे एसा टीका हु समाणिआ धवला ।। ८ ।। वोदणराय-णरिंदे णरिंद-चूडामणिम्हि भुंजते । सिद्धतगंथमस्थिय गुरुप्पसारण विगत्ता सा ॥ ९॥ दुर्भाग्यतः इस प्रशस्तिका पाठ अनेक जगह अशुद्ध है जिसे उपलब्ध अनेक प्रतियोंके का मिलानसे भी अभीतक हम पूरी तरह शुद्ध नहीं कर सके । तो भी इस प्रशस्तिसे वीरसेनाचार्य टीकाकारके विषयमें हमें बहुतसी ज्ञातव्य बातें विदित हो जाती हैं। पहली गाथासे स्पष्ट 17 है कि इस टीकाके रचयिताका नाम वीरसेन है और उनके गुरुका नाम एलाचार्य। फिर चौथी गाथामें वीरसेनके गुरुका नाम आर्यनन्दि और दादा गुरुका नाम चन्द्रसेन कहा गया है । संभवतः एलाचार्य उनके विद्यागुरु और आर्यनान्द दीक्षागुरु थे । इसी गाथामें उनकी शाखाका नाम भी पंचस्तूपान्वय दिया है। पांचवी गाथामें कहा गया है कि इस टीकाके कर्ता वीरसेन सिद्धांत, छंद, ज्योतिष, व्याकरण और प्रमाण अर्थात् न्याय, इन शास्त्रोंमें निपुण थे और भट्टारक पदसे विभूषित थे। आगेकी तीन अर्थात् ६ से ८ वीं तककी गाथाओंमें इस टीकाका नाम 'धवला' दिया गया है और उसके समाप्त होनेका समय वर्ष, मास, पक्ष, तिथि, नक्षत्र व अन्य ज्योतिषसंबन्धी योगोंके सहित दिया है और जगतुंगदेव के राज्यका भी उल्लेख किया है। अन्तिम अर्थात् ९ वीं गाथामें पुनः राजाका नाम दिया है जो प्रतियोंमें वोद्दणराय ' पढ़ा जाता है। वे नरेन्द्रचूडामणि थे। उन्हींके राज्यमें सिद्धान्त ग्रन्थके ऊपर गुरुके प्रसादसे लेखकने इस टीकाकी रचना की। द्वितीय सिद्धान्त ग्रन्थ कषायप्राभृतकी टीका 'जयधवला' का भी एक भाग इन्हीं बीरसेनाचार्यका लिखा हुआ है । शेष भाग उनके शिष्य जिनसेनने पूरा किया था। उसकी प्रश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001395
Book TitleShatkhandagama Pustak 01
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1939
Total Pages560
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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