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________________ राज्य प्रारम्भ माना गया है वह ठीक बैठ जाता है, किंतु उसे विक्रम संवत्का प्रारम्भ नहीं समझना चाहिये । जिन मतोंमें विक्रमके राज्यसे पूर्व या जन्मसे पूर्व ४७० वर्ष बतलाये गये हैं उनमें विक्रमके जन्म, राज्यकाल व मृत्युके समयसे संवत्-प्रारंभके सम्बन्धमें लेखकोंकी भ्रान्ति ज्ञात होती है। भ्रान्तिका एक दूसरा भी कारण हुआ है। हेमचन्द्रने वीरनिर्वाणसे नन्द राजातक ६० वर्षका अन्तर बतलाया है और चन्द्रगुप्त मौर्य तक १५५ वर्षका । इसप्रकार नन्दोंका राज्यकाल ९५ वर्ष पड़ता है। किंतु अन्य लेखकोंने चन्द्रगुप्तके राज्यकाल तकके १५५ वर्षाको नन्दवंशका ही काल मान लिया है और उससे पूर्व ६० वर्षोंको नन्दकाल तक भी कायम रखा हैं । इसप्रकार जो ६० वर्ष बढ़ गये उसे उन्होंने अन्तमें विक्रमकालमें घटाकर जन्म या राज्यकाल से ही संवत्का प्रारम्भ मान लिया और इसप्रकार ४७० वर्षकी संख्या कायम रखी। इस मत का प्रतिपादन पं. जुगलकिशोरजी मुख्तारने किया है। . ___ इस मतका बुद्धनिर्वाण व आचार्य-परम्पराकी गणना आदिसे कैसा सम्बन्ध बैठता है, यह पुनः विवादास्पद विषय है जिसका स्वतंत्रतासे विचार करना आवश्यक है। यहां पर तो प्रस्तुत प्रमाणों पर से यह मान लेनेमें आपत्ति नहीं कि वीर-निर्वाणसे ४७० वर्ष पश्चात् विक्रमकी मृत्युके साथ प्रचलित विक्रम संवत् प्रारम्भ हुआ। अतः प्रस्तुत षटखंडागमका रचना काल विक्रम संवत् ६१४ - १७० = १४४, शक संवत् ६१४ - ६०५ = ९ तथा ईस्वी सन् ६१४ - ५२७ = ८७ के पश्चात् पड़ता है । ७. षट्खण्डागमकी टीका धवलाके रचयिता प्रस्तुत ग्रंथ धवनाके अन्तमें निम्न नौ गाथाएं पाई जाती हैं जो इसके रचयिताकी प्रशस्ति है धवलाकी अन्तिम प्रशस्ति जस्स सेसाएण (पसाएण) मए सिद्धतमिदं हि अहिलहुंदी (अहिलहुदं)। महु सो एलाइरियो पसियउ वरवीरसेणस्स ।। १ ।। वंदामि उसहसेणं तिहुवण-जिय-बंधवं सिर्व संतं । णाण-किरणावहासिय-सयल-इयर-तम-पणासियं दिई ।। २ ॥ अरहंतपदो ( अरहंतो ) भगवंतो सिद्धा सिद्धा पसिद्ध आइरिया । साहू साहू य महं पसियंतु भडारया सव्वे ॥ ३ ॥ १ अनेकान्त, १ पृ. १४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001395
Book TitleShatkhandagama Pustak 01
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1939
Total Pages560
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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