SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 471
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५२ ] छक्खंडागमे जीवाणं [ १, १, ११३. लोभकसाई एइंदिय-प्पहुडि जाव सुहुम-सांपराइय-सुद्धि-संजदा त्ति ॥११३ ॥ शेषकषायोदयविनाशे लोभकषायस्य विनाशानुपपत्तेः लोभकषायस्य सूक्ष्मसाम्परायोऽवधिः। अकपायोपलक्षितगुणप्रतिपादनार्थमाह अकसाई चदुसु हाणेसु अत्थि उवसंतकसाय-वीयराय-छदुमत्था खीणकसाय-वीयराय-छदुमत्था सजोगिकेवली अजोगिकेवलि तिं ॥ ११४ ॥ ___उपशान्तकषायस कथमकषायत्वमिति चेत् , कथं च न भवति? द्रव्यकषायस्यानन्तस्य सस्वात् । न, कषायोदयाभावापेक्षया तस्याकषायत्वोपपत्तेः । सुगममन्यत् । कषायस्यादेश किमिति नोक्तमिति चेन्न, विशेषाभावतोऽनेनैव गतार्थत्वात् । लोभकषायसे युक्त जीव एकेन्द्रियोंसे लेकर सूक्ष्मसांपरायशुद्धिसंयत गुणस्थानतक होते हैं ॥ ११३ ॥ शेष कषायोंके उदयके नाश हो जाने पर उसीसमय लोभकषायका विनाश बन नहीं सकता है, इसलिये लोभकषायकी अन्तिम मर्यादा सूक्ष्मसांपराय गुणस्थान है। कषायरहित जीवोंसे उपलक्षित गुणस्थानोंके प्रतिपादन करनेके लिये सूत्र कहते हैं कषायरहित जीव उपशान्त कषाय-वीतराग-छमस्थ, क्षीणकषाय-वीतराग छन्मस्थ, सयोगिकेवली और अयोगिकेवली इन चार गुणस्थानों में होते हैं ॥ ११४ ॥ शंका-उपशान्तकषाय गुणस्थानको कषायरहित कैसे कहा? प्रतिशंका-वह कषायरहित क्यों नहीं हो सकता है? शंका-वहां अनन्त द्रव्यकषायका सद्भाव होनेसे उसे कषायरहित नहीं कह सकते हैं? समाधान-नहीं, क्योंकि, कषायके उदयके अभावकी अपेक्षा उसमें कषायोंसे रहितपना बन जाता है। शेष कथन सुगम है। शंका-कषायोंका विशेष (मार्गणाओंमें ) कथन क्यों नहीं किया ? समाधान--नहीं, क्योंकि, कषायोंके सामान्य कथनसे उनका मार्गणाओंमें कथन करनेमें कोई विशेषता नहीं है, इसीसे उसका बान हो जाता है। इसलिये आदेश प्ररूपणा नहीं की। १ लोभकषाये तान्येव सूक्ष्मसाम्परायस्थानाधिकानि । स. सि. १. ८. २ अकषायः उपशान्तकषायः क्षीणकषायः सयोगकेवली अयोगकेवली चेदि । स. सि. १. ८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001395
Book TitleShatkhandagama Pustak 01
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1939
Total Pages560
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy