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________________ ३२.] छक्खंडागमे जीवाणं [१, १, ८३, तस्य नरकायुषो बन्धाभावात् । नापि बद्धनरकायुष्कः सासादनं प्रतिपद्य नारकेषूत्पद्यते तस्य तस्मिन् गुणे मरणाभावात् । नासंयतसम्यग्दृष्टयोऽपि तत्रोत्पद्यन्ते तत्रोत्पत्तिनिमित्ताभावात् । न तावत्कर्मस्कन्धबहुत्वं तस्य तत्रोत्पत्तेः कारणं क्षपितकर्मांशानामपि जीवानां तत्रोत्पत्तिदर्शनात् । नापि कर्मस्कन्धाणुत्वं तत्रोत्पत्तेः कारणं गुणितकर्मांशानामपि तत्रोत्पत्तिदर्शनात् । नापि नरकगतिकर्मणः सत्त्वं तस्य तत्रोत्पत्तेः कारणं तत्सत्त्वं प्रत्यविशेषतः सकलपञ्चेन्द्रियाणामपि नरकप्राप्तिप्रसङ्गात् । नित्यनिगोदानामपि विद्यमानत्रसकर्मणां त्रसेपुत्पत्तिप्रसङ्गात् । नाशुभलेश्यानां सत्त्वं तत्रोत्पत्तेः कारणं मरणावस्थायामसंयतसम्यग्दृष्टेः षट्सु पृथिवीपूत्पत्तिनिमित्ताशुभलेश्याभावात् । न नरकायुषः सत्त्वं तस्य तत्रोत्पत्तेः कारणं सम्यग्दर्शनासिना छिन्नषट्पृथिव्यायुष्कत्वात् । न च तच्छेदोऽसिद्धः आर्षात्तत्सिद्धयुपलम्भात् । ततः स्थितमेतत् न सम्यग्दृष्टिः षट्सु पृथिवीकृत्पद्यते इति । सासादन गुणस्थानवालेके नरकायुका बन्ध ही नहीं होता है। जिसने पहले नरकायुका बन्ध कर लिया है ऐसे जीव भी सासादन गुणस्थानको प्राप्त होकर नारकियों में उत्पन्न नहीं होते • हैं, क्योंकि, नरकायुका बन्ध करनेवाले जीवका सासादन गुणस्थानमें मरण ही नहीं होता है। असंयतसम्यग्दृष्टि जीव भी द्वितीयादि पृथिवियोंमें उत्पन्न नहीं होते हैं, क्योंकि, सम्यग्दृष्टियोंके शेष छह पृथिवियोंमें उत्पन्न होनेके निमित्त नहीं पाये जाते हैं। यदि कर्मस्कन्धोंकी अधिकता असंयतसम्यग्दृष्टि जीवके शेष छह नरकोंमें उत्पत्तिका कारण कहा जावे, सो भी ठीक नहीं है, क्योंकि, जिन्होंने बहुतसे कर्मस्कन्धोंका क्षय कर दिया है ऐसे जीवोंकी भी नरकमें उत्पत्ति देखी जाती है। कर्मस्कन्धोंकी अल्पता भी नरकमें उत्पत्तिका कारण नहीं है, क्योंकि, जिनके उत्तरोत्तर गुणित कर्मस्कन्ध पाये जाते हैं उनकी भी वहां पर उत्पत्ति देखी जाती है। नरकगतिका सत्त्व भी सम्यग्दृष्टिके नरकमें उत्पत्तिका कारण कहना ठीक नहीं है, क्योंकि, नरकगतिके सत्त्वके प्रति कोई विशेषता न होनेसे सभी पंचेन्द्रिय जीवोंको नरकगतिकी प्राप्तिका प्रसंग आजायगा। तथा नित्यनिगोदिया जीवोंके भी त्रसकर्मकी सत्ता विद्यमान रहती है, इसलिये उनकी भी सोंमें उत्पत्ति होने लगेगी। अशुभ लेश्याके सत्त्वको नरकमें उत्पत्तिका कारण कहना ठीक नहीं है, क्योंकि, मरणके समय असंयतसम्यग्दृष्टि जीवके नीचेकी छह पृथिवियोंमें उत्पत्तिका कारणरूप अशुभ लेश्याएं नहीं पाई जाती हैं। नरकायुका सत्त्व भी सम्यग्दृष्टिके नीचेकी छह पृथिवियों में उत्पत्तिका कारण नहीं है, क्योंकि, सम्यग्दर्शनरूपी खड्गसे नीचेकी छह पृथिवीसंबन्धी आयु काट दी जाती है। नीचेकी छह पृथिवीसंबन्धी आयुका कटना आसिद्ध भी नहीं है, क्योंकि, आगमसे इसकी पुष्टि होती है। इसलिये ग्रह सिद्ध हुआ कि नीचेकी छह पृथिवियोंमें सम्यग्दृष्टी जीव उत्पन्न नहीं होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001395
Book TitleShatkhandagama Pustak 01
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1939
Total Pages560
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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