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________________ ३२० ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं . [१, १, ८०. मिति चेन्न, एकस्य नानात्मकस्य नानात्वाविरोधात् । विरुद्धयोः कथमेकमधिकरणमिति चेन्न, दृष्टत्वात् । न हि दृष्टेऽनुपपन्नता' । नारकाः मिथ्यादृष्टयोऽसंयतसम्यग्दृष्टयश्च पर्याप्ताश्चापर्याप्ताश्च भवन्ति । समुच्चयावगतये चशब्दोऽत्र वक्तव्यःन, सामर्थ्यलभ्यत्वात् । तत्रतनशेषगुणद्वयप्रदेशप्रतिपादनार्थमाहसासणसम्माइट्ठि-सम्मामिच्छाइटि-ट्टाणे णियमा पज्जत्ता॥८०॥ नारकाः निष्पन्नषट्पर्याप्तयः सन्तः ताभ्यां गुणाभ्यां परिणमन्ते नापर्याप्तावस्थायाम् । किमिति तत्र तो नोत्पद्यते इति चेत्तयोस्तत्रोत्पत्तिनिमित्तपारणामाभावात् । समाधान-नहीं, क्योंकि, एक भी नानात्मक होता है, इसलिये एकको नानारूप मान लेने में कोई विरोध नहीं आता है। शंका--विरुद्ध दो पदार्थों का एकाधिकरण कैसे हो सकता है ? समाधान-- नहीं, क्योंकि, विरुद्ध दो पदार्थोंका भी एकाधिकरण देखा जाता है। और देखे गये कार्यमें यह नहीं बन सकता यह कहा नहीं जा सकता है। अतः सिद्ध हुआ कि मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि नारकी पर्याप्तक भी होते हैं और अपर्याप्तक भी होते हैं। शंका-समुच्चयका ज्ञान करानेके लिये इस सूत्रमें च शब्दका कथन करना चाहिये? समाधान-नहीं, क्योंकि, वह सामर्थ्यसे ही प्राप्त हो जाता है। अब नारकसंबन्धी शेष दो गुणस्थानोंके आधारके प्रतिपादन करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं नारकी जीव सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें नियमसे पर्याप्तक होते हैं ॥ ८ ॥ जिनकी छह पर्याप्तियां पूर्ण हो गई हैं ऐसे नारकी ही इन दो गुणस्थानोंके साथ परिणत होते हैं, अपर्याप्त अवस्थामें नहीं। शंका- नारकियोंकी अपर्याप्त अवस्थामें ये दो गुणस्थान क्यों नहीं उत्पन्न होते हैं ? समाधान- क्योंकि, नारकियोंकी अपर्याप्त अवस्थामें इन दो गुणस्थानोंकी उत्पत्तिके निमित्तभूत परिणामोंका अभाव है, इसलिये उनकी अपर्याप्त अवस्थामें ये दो गुणस्थान नहीं होते हैं। १ स्वभावेऽध्यक्षतः सिद्धे यदि पर्यनुयुज्यते । तत्रोत्तरमिदं युक्तं न दृष्टेऽनुपपन्नता ॥ स. त. पृ. २६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001395
Book TitleShatkhandagama Pustak 01
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1939
Total Pages560
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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