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________________ (१८) इन दोनोंने धरसेनाचार्यसे सिद्धान्त सीखकर ग्रंथ-रचना की, अतः धरसेनाचार्य उनके शिक्षागुरु थे। पर उनके दीक्षागुरु कौन थे इसका कोई उल्लेख प्रस्तुत ग्रंथमें नहीं मिलता। ब्रह्म नेमिदत्तने अपने आराधना-कथाकोषमें भी धरसेनाचार्यकी कथा दी है। उसमें कहा है कि धरसेनाचार्यने जिस मुनिसंघको पत्र भेजा था उसके संघाधिपति महासेनाचार्य थे और उन्होंने अपने संघमेंसे पुष्पदन्त और भूतबलिको उनके पास भेजा। यह कहना कठिन है कि ब्रह्म नेमिदत्तने संघाधिपतिका नाम कथानकके लिये कल्पित कर लिया है या वे किसी आधार परसे उसे लिख रहे हैं। विबुध श्रीधरने अपने श्रुतावतारमें भविष्यवाणी के रूपमें एक भिन्न ही कथानक दिया है जो इस प्रकार है-- इसी भरतक्षेत्रके वांमिदेश ( ब्रह्मदेश ? ) में वसुंधरा नामकी नगरी होगी। वहांके राजा नरवाहन और रानी सुरूपाको पुत्र न होनेसे राजा खेदखिन्न होगा । तब सुबुद्धि नामके सेठ उन्हें पद्मावतीकी पूजा करनेका उपदेश देंगे। राजाके तदनुसार देवीकी पूजा करनेपर पुत्रप्राप्ति होगी और वे उस पुत्र का नाम पद्म रक्खेंगे । फिर राजा सहस्रकूट चैत्यालय बनवावेंगे और प्रतिवर्ष यात्रा करेंगे । सेठजी भी राजपासादसे पद पदपर पृथ्वीको जिनमंदिरोंसे मंडित करेंगे । इसी समय वसंत ऋतुमें समस्त संघ वहां एकत्र होगा और राजा सेठजीके साथ जिनपूजा करके रथ चलावेंगे । उसी समय राजा अपने मित्र मगधस्वामीको मुनींद्र हुआ देख सुबुद्धि सेठके साथ वैराग्यसे जैनी दीक्षा धारण करेंगे । इसी समय एक लेखवाहक वहां आवेगा । वह जिन देवोंको नमस्कार करके व मुनियोंकी तथा (परोक्षमें) धरसेन गुरुकी वन्दना करके लेख समर्पित करेगा। वे मुनि उसे वांचेंगे कि गिरिनगरके समीप गुफावासी धरसेन मुनीश्वर आग्रायणीय पूर्वकी पंचम वस्तुके चौथे प्राभृतशास्त्रका व्याख्यान प्रारम्भ करनेवाले हैं । धरसेन भट्टारक कुछ दिनोंमें नरवाहन और सुबुद्धि नामके मुनियों को पठन, श्रवण और चिन्तनक्रिया कराकर आषाढ़ शुक्ला एकादशीको शास्त्र समाप्त करेंगे । उनमेंसे एककी भूत रात्रिको बलिविधि करेंगे और दूसरेके चार दांतोंको सुन्दर बना देंगे। अतएव भूत-बलिके प्रभावसे नरवाहन मुनिका नाम भूतबलि और चार दांत समान हो जानेसे सुबुद्धि मुनिका नाम पुष्पदन्त होगा। इसके लेखकका समय आदि अज्ञात है और यह कथानक कल्पित जान पड़ता है । अतएव उसमें कही गई बातोंपर कोई जोर नहीं दिया जासकता। - श्रवणबेलगोलके एक शिलालेख (नं. १०५ ) में पुष्पदन्त और भूतबलिको स्पष्टरूपसे संघभेद-कर्ता अहद्बलिके शिष्य कहा है । यथा-- १ विबुधश्रीधर-श्रुतावतार ( मा. जै. ग्रं. २१ सिद्धान्तसारादिसंग्रह, पृ. ३१६). Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001395
Book TitleShatkhandagama Pustak 01
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1939
Total Pages560
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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