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________________ २८२ ] छक्खंडागमे जीवाणं [ १, १, ५०. द्वयात्मकमुभयमनः । संशयानध्यवसायज्ञाननिबन्धनमसत्यमोपमन इति । अथवा तद्वचनजननयोग्यतामपेक्ष्य चिरन्तनोऽप्यर्थः समीचीन एव । उक्तं च www. णय सच्च-मोस- जुत्तो जो दु मणो सो असच्चमोसमणो । जो जोगो तेण हवे असच्चमोसो दु मणजोगो' ॥ १५५ ॥ मनसो भेदमभिधाय साम्प्रतं गुणस्थानेषु तत्स्वरूपनिरूपणार्थमुत्तरसूत्रमाहमणजोगो सच्चमणजोगो असच्च मोसमणजोगो सण्णिमिच्छाइट्टि - पहुड जाव सजोगिकेवलिति ॥ ५० ॥ मनोयोग इति पञ्चमो मनोयोगः क्व लब्धश्चैनैप दोपः, चतसृणां मनोव्यक्तीनां सामान्यस्य पञ्चमत्वोपपत्तेः । किं तत्सामान्यमिति चेन्मनसः सादृश्यम् । मनसः समाधान- जहां जिसप्रकारकी वस्तु विद्यमान हो, वहां उसीप्रकार से प्रवृत्ति करनेवाले मनको सत्यमन कहते हैं । इससे विपरीत मनको असत्यमन कहते हैं । सत्य और असत्य इन दोनों रूप मनको उभयमन कहते हैं । तथा जो संशय और अनध्यवसायरूप ज्ञानका कारण है उसे अनुभय मन कहते हैं । अथवा मनमें सत्य, असत्य आदि वचनों को उत्पन्न करनेरूप योग्यता है, उसकी अपेक्षासे सत्यवचनादिके निमित्तसे होनेके कारण जिसे पहले उपचार कह आये हैं वह कथन मुख्य भी है। कहा भी हैजो मन सत्य और मृषासे युक्त नहीं होता है उसको असत्यमृषामन कहते हैं, और उससे जो योग अर्थात् प्रयत्नविशेष होता है उसे असत्यमृषामनोयोग कहते हैं ॥ १५५ ॥ मनोयोगके भेदोंका कथन करके अब गुणस्थानों में उसके स्वरूपका निरूपण करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं सामान्यसे मनोयोग और विशेषरूपसे सत्यमनोयोग तथा संज्ञी मिथ्यादृष्टिसे लेकर सयोगिकेवली पर्यन्त होते हैं ॥ ५० ॥ शंका- चार मनोयोगोंके अतिरिक्त मनोयोग इस नामका पांचवा मनोयोग कहांसे आया ? समाधान -- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, भेदरूप चार प्रकारके मनोयोगों में रहनेवाले सामान्य योगके पांचवी संख्या बन जाती है । शंका -- वह सामान्य क्या है जो चार प्रकारके मनोयोगों में पाया जाता है ? समाधान --- यहां पर सामान्यसे मनकी सदृशताका ग्रहण करना चाहिये । १ गो. जी. २१९. Jain Education International सत्यमृषायोग For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001395
Book TitleShatkhandagama Pustak 01
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1939
Total Pages560
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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