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________________ १, १, ४१.] संत-परूवणाणुयोगद्दारे कायमग्गणापरूत्रणं [२६९ समापतेदिति चेन्न, बादरत्वेन सतामभावानुपपत्तेः । अनुक्तं कथमवगम्यत इति चेन्न, सत्त्वान्यथानुपपत्तितस्तत्सिद्धेः । सौम्यविशिष्टस्यापि जीवसत्त्वस्यासंभवः समस्तीति नैकान्तिको हेतुरिति चेन्न, बादरा इति लक्षणमुत्सर्गरूपत्वादशेषप्राणिव्यापि । ततः प्रत्येकशरिवनस्पतयो बादरा एव न सूक्ष्माः साधारणशरीरेष्विव उत्सर्गविधिबाधकापवादविधेरभावात् । तदुत्सर्गत्वं कथमवगम्यत इति चेन्न, प्रत्येकवनस्पतित्रसेषूभयविशेषणानुपादानान्न सूक्ष्मत्वमुत्सर्गः आर्यमन्तरेण प्रत्यक्षादिनानवगतेरप्रसिद्धस्य बादरत्वस्येवोत्सर्गत्वविरोधात् । साधारणं सामान्यं शरीरं येषां ते साधारणशरीराः । प्रतिनियतजीवप्रतिबद्धैः समाधान-ऐसा नहीं है, क्योंकि, प्रत्येक वनस्पतिका बादररूपसे अस्तित्व पाया जाता है, इसलिये उसका अभाव नहीं हो सकता है। शंका-प्रत्येक वनस्पतिको बादर नहीं कहा गया है, फिर कैसे जाना जाय कि प्रत्येक वनस्पति बादर ही होती है ? समाधान- नहीं, क्योंकि, प्रत्येक वनस्पतिका दूसरे रूपसे अस्तित्व सिद्ध नहीं हो सकता है, इसलिये बादररूपसे उसके अस्तित्वकी सिद्धि हो जाती है। शंका- प्रत्येक वनस्पतिमें यद्यपि सूक्ष्मता-विशिष्ट जीवकी सत्ता असंभव है, परंतु सत्त्वान्यथानुपपत्ति रूपसे उसकी भी सिद्धि हो सकती है, इसलिये यह सत्त्वान्यथानुपपत्तिरूप हेतु अनैकान्तिक है ? समाधान- नहीं, क्योंकि, बादर यह लक्षण उत्सर्गरूप ( व्यापक ) होनेसे मंपूर्ण प्राणियों में पाया जाता है। इसलिये प्रत्येक शरीर वनस्पति जीव बादर ही होते हैं, सूक्ष्म नहीं, क्योंकि, जिसप्रकार साधारण शरीरों में उत्सर्गविधिकी बाधक अपवादविधि पाई जाती है, अर्थात् साधारण शरीरों में बादर भेद के अतिरिक्त सूक्ष्म भेद भी पाया जाता है, उसप्रकार प्रत्येक वनस्पतिमें अपवादविधि नहीं पाई जाती है, अर्थात् उनमें सूक्ष्म भेदका सर्वथा अभाव है। शंका- प्रत्येक वनस्पतिमें बादर यह लक्षण उत्सर्गरूप है, यह कैसे जाना जाय ? समाधान- नहीं, क्योंकि, प्रत्येक वनस्पति और त्रसों बादर और सूक्ष्म ये दोनों विशेषण नहीं पाये जाते हैं. इसलिये सक्ष्मत्व उत्सर्गरूप नहीं हो सकता है. क्योंकि क, आगमके विना प्रत्यक्षादि प्रमाणोंसे सूक्ष्मत्वका ज्ञान नहीं होता है, अतएव प्रत्यक्षादिसे अप्रसिद्ध सूक्ष्मको बादरकी तरह उत्सर्गरूप माननेमें विरोध आता है। विशेषार्थ- बादरत्व पांचों स्थावर और त्रसों में पाया जाता है, परंतु सूक्ष्मत्व प्रत्येकवनस्पति और त्रसों में नहीं पाया जाता है । इसलिये बादर उत्सर्ग विधि है, सूक्ष्मत्व नहीं।। जिन जीवोंका साधारण अर्थात् भिन्न भिन्न शरीर न होकर समानरूपसे एक शरीर पाया जाता है उन्हें साधारणशरीर जीव कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001395
Book TitleShatkhandagama Pustak 01
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1939
Total Pages560
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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