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________________ २६८.] छक्खंडागमे जीवाणं वनस्पतिकायिकभेदप्रतिपादनार्थमाह वण फइकाइया दुविहा, पत्तेयसरीरा साधारणसरीरा । पत्तेयसरीरा दुविहा, पज्जत्ता अपनत्ता । साधारणसरीरा दुविहा, वादरा सुदुमा । बादरा दुविहा, पज्जत्ता अपज्जत्ता । सुहुमा दुविहा, पज्जत्ता अपज्जत्ता चेदि ॥ ४१ ॥ [ १, १, ४१. प्रत्येकं पृथक् शरीरं येषां ते प्रत्येकशरीराः खदिरादयो वनस्पतयः । पृथिवी - कायादिपञ्चानामपि प्रत्येकशरीरव्यपदेशस्तथा सति स्यादिति चेन्न इष्टत्वात् । तर्हि तेषामपि प्रत्येकशरीरविशेषणं विधातव्यमिति चेन्न, तत्र वनस्पतिष्विव व्यवच्छेद्याभावात् । बादरसूक्ष्मोभयविशेषणाभावादनुभयत्वमनुभयस्य चाभावात्प्रत्येकशरीरवनस्पतीनामभावः अब वनस्पति कायिक जीवोंके भेद प्रतिपादन करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैंवनस्पतिकायिक जीव दो प्रकार के हैं, प्रत्येकशरीर और साधारणशरीर । प्रत्येकशरीर वनस्पतिकायिक जीव दो प्रकार के हैं, पर्याप्त और अपर्याप्त । साधारणशरीर वनस्पतिकायिक जीव दो प्रकारके हैं, बादर और सूक्ष्म । बादर दो प्रकारके हैं, पर्याप्त और अपर्याप्त । सूक्ष्म दो प्रकारके हैं, पर्याप्त और अपर्याप्त ॥ ४१ ॥ जिनका प्रत्येक अर्थात् प्रथक् प्रथक् शरीर होता है उन्हें प्रत्येकशरीर जीव कहते हैं, जैसे, खैर आदि वनस्पति । शंका - प्रत्येकशरीरका इसप्रकार लक्षण करने पर पृथिवीकाय आदि पांचों शरीको भी प्रत्येकशरीर संज्ञा प्राप्त हो जायगी ? समाधान - यह आशंका कोई आपत्ति जनक नहीं है, क्योंकि, पृथिवीकाय आदिको प्रत्येकशरीर मानना इष्ट ही है । शंका- तो फिर पृथिवीकाय आदिके साथ भी प्रत्येकशरीर विशेषण लगा लेना चाहिये ? समाधान -- नहीं, क्योंकि, जिसप्रकार वनस्पतियोंमें प्रत्येक वनस्पतिसे निराकरण करने योग्य साधारण वनस्पति पाई जाती है, उसप्रकार पृथिवी आदिमें प्रत्येक शरीर से भिन्न निराकरण करने योग्य कोई भेद नहीं पाया जाता है, इसलिये पृथिवी आदिमें अलग विशेषण देने की कोई आवश्यकता नहीं है । Jain Education International शंका – प्रत्येक वनस्पतिमें बादर और सूक्ष्म दो विशेषण नहीं पाये जाते हैं, इसलिये प्रत्येक वनस्पतिको अनुभयपना प्राप्त हो जाता है । परंतु बादर और सूक्ष्म इन दो भेदोंको छोड़कर अनुभवरूप कोई तीसरा विकल्प पाया नहीं जाता है, इसलिये अनुभवरूप विकल्पके अभाव में प्रत्येकशरीर वनस्पतियों का भी अभाव प्राप्त हो जायगा ? For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001395
Book TitleShatkhandagama Pustak 01
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1939
Total Pages560
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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