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________________ (१५) सौराष्ट्र देशके गिरिनगरके समीप ऊर्जयन्त पर्वतकी चन्द्रगुफा के निवासी धरसेनाचार्यका वर्णन आया है । इन चार आरातीय यतियों और अर्हद्बलि, माघनन्दि व धरसेन आचार्योंके बीच इन्द्रनन्दिने कोई गुरु-शिष्य परम्पराका उल्लेख नहीं किया । केवल अर्हद्बलि आदि तीन आचार्यों में एकके पश्चात् दूसरेके होनेका स्पष्ट संकेत किया है । पर इन तीनोंके गुरु-शिष्य तारतम्यके सबन्धमें भी उन्होंने कुछ नहीं कहा। यही नहीं प्रत्युत उन्होंने स्पष्ट कह दिया है कि गुणधरधरसेनान्वयगुर्योः पूर्वापरक्रमोऽस्माभिः । न ज्ञायते तदन्वयकथकागममुनिजनाभावात् ॥१५१॥ अर्थात् गुणधर और 'वरसेनकी पूर्वापर गुरुपरम्परा हमें ज्ञात नहीं है, क्योंकि, उसका वृत्तान्त न तो हमें किसी आगममें मिला और न किसी मुनिने ही बतलाया । किंतु नन्दिसंघकी प्राकृत पट्टावलीमें अर्हद्वलि, माघनन्दि और धरसेन तथा उनके पश्चात् पुष्पदन्त और भूतबलिको एक दूसरेके उत्तराधिकारी बतलाया है जिससे ज्ञात होता है कि धरसेनके दादागुरु अर्हद्वलि और गुरु माघनन्दि थे । नन्दिसंघकी संस्कृत गुर्वावली में भी माघनन्दिका नाम आया है । इस पट्टावलीके प्रारंभ में भद्रबाहु और उनके शिष्य गुप्तिगुप्तकी वंदना की गई है, किन्तु उनके नामके साथ संघ आदिका उल्लेख नहीं किया गया है। उनकी वन्दनाके पश्चात् मूलसंघमें नन्दिसंघ बलात्कारगण के उत्पन्न होनेके साथ ही माघनन्दिका उल्लेख किया गया है । संभव है कि संघभेदके विधाता अलि आचार्यने उन्हें ही नन्दिसंघका अग्रणी बनाया हो । उनके नामके साथ ' नन्दि' पद होनेसे भी उनका इस गणके साथ संबन्ध प्रकट होता है । यथा- Jain Education International श्रीमानशेषनरनायकवन्दितांत्रिः श्रीगुप्तिगुप्त इति विश्रुतनामधेयः । यो भद्रबाहुमुनिपुंगवपट्टपद्मः सूर्यः स वो दिशतु निर्मलसंघवृद्धिम् ॥ १ ॥ श्रीमूलसंघेऽजनि नन्दिसंघः तस्मिन्बलात्कारगणोऽतिरम्यः । तत्राभवत्पूर्वपदांशवेदी श्रीमाघनन्दी नरदेववन्द्यः ॥ २ ॥ जै. सि. भा. १, ४, पृ. ५१. पट्टावलीमें इनके पट्टधारी जिनचन्द्र और उनके पश्चात् पद्मनन्दि कुन्दकुन्दका उल्लेख किया गया है, पर धरसेनका नहीं । अतः संशय हो सकता है कि ये वे ही धरसेनके गुरु हैं या For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001395
Book TitleShatkhandagama Pustak 01
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1939
Total Pages560
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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