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________________ २३८] छक्खंडागमे जीवट्ठाण [ १, १, ३३. प्राधान्येन विवक्षितं तदा इन्द्रियेण वस्त्वेव विषयीकृतं भवेद् वस्तुव्यतिरिक्तस्पर्शायभावात् । एतस्यां विवक्षायां स्पृश्यत इति स्पर्शी वस्तु । यदा तु पर्यायः प्राधान्येन विवक्षितस्तदा तस्य ततो भेदोपपत्तेरौदासीन्यावस्थितभावकथनाद्भावसाधनत्वमप्यविरुद्धम्, यथा स्पर्शनं स्पर्श इति । यद्येवम्, सूक्ष्मेषु परमाण्वादिषु स्पर्शव्यवहारो न प्राप्नोति तत्र तदभावात् ? नैष दोषः, सूक्ष्मेष्वपि परमाण्वादिष्वस्ति स्पर्शः स्थूलेषु तत्कार्येषु तदर्शनान्यथानुपपत्तेः । नात्यन्तासतां प्रादुर्भावोऽस्त्यतिप्रसङ्गात् । किन्तु इन्द्रियग्रहणयोग्या न भवन्ति । ग्रहणायोग्यानां कथं स व्यपदेश इति चेन्न, तस्य सर्वदायोग्यत्वाभावात् । परमाणुगतः सर्वदा समाधान- स्पर्शन-इन्द्रियका विषय स्पर्श है। शंका-स्पर्शका क्या अर्थ है ? अर्थात् स्पर्शसे किसका ग्रहण करना चाहिये ? समाधान-जिस समय द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा प्रधानतासे वस्तु ही विवक्षित होती है, उस समय इन्द्रियके द्वारा वस्तुका ही ग्रहण होता है, क्योंकि, वस्तुको छोड़कर स्पर्शादिक धर्म पाये नहीं जाते हैं । इसलिये इस विवक्षामें जो स्पर्श किया जाता है उसे स्पर्श कहते हैं, और वह स्पर्श वस्तुरूप ही पड़ता है। तथा जिस समय पर्यायार्थिकनयकी प्रधानतासे पर्याय विवक्षित होती है, उससमय पर्यायका द्रव्यसे भेद होनेके कारण उदासीनरूपसे अवस्थित भावका कथन किया जाता है। इसलिये स्पर्शमें भावसाधन भी बन जाता है । जैसे, स्पर्शन ही स्पर्श है। शंका- यदि ऐसा है, तो सूक्ष्म परमाणु आदिमें स्पर्शका व्यवहार नहीं बन सकता है, क्योंकि, उसमें स्पर्शनरूप क्रियाका अभाव है ? समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, सूक्ष्म परमाणु आदिमें भी स्पर्श है, अन्यथा, परमाणुओंके कार्यरूप स्थूल पदार्थों में स्पर्शकी उपलब्धि नहीं हो सकती थी। किंतु स्थूल पदार्थोंमें स्पर्श पाया जाता है, इसलिये सूक्ष्म परमाणुओंमें भी स्पर्शकी सिद्धि हो जाती है, क्योंकि, न्यायका यह सिद्धान्त है, कि जो अत्यंत (सर्वथा) असत् होते हैं उनकी उत्पत्ति नहीं होती है। यदि सर्वथा असत्की उत्पत्ति मानी जावे तो अतिप्रसंग हो जायगा। (अर्थात् बांझके पुत्र, आकाशके फूल आदि अविद्यमान बातोंका भी प्रादुर्भाव मानना पड़ेगा) इसलिये यह समझना चाहिये कि परमाणुओंमें स्पर्शादिक पाये तो अवश्य जाते हैं, किंतु वे इन्द्रियोंके द्वारा ग्रहण करने योग्य नहीं होते हैं। शंका-जब कि परमाणुओंमें रहनेवाला स्पर्श इन्द्रियोंके द्वारा ग्रहण नहीं किया जा सकता है, तो फिर उसे स्पर्श संज्ञा कैसे दी जा सकती है ? समाधान-नहीं, क्योंकि, परमाणुगत स्पर्शके इन्द्रियोंके द्वारा ग्रहण करनेकी योग्यताका सदैव अभाव नहीं है। १ 'मवासतो जन्म सतोमनाशो' बॅ. स्व. स्तो. १४. नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः। भग.. गी. २. १६. ५ प्रबन्धोऽयं त. रा. बा. २. २०. १. ध्याख्यया समानः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001395
Book TitleShatkhandagama Pustak 01
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1939
Total Pages560
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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