________________
१, १, १८.] संत-परूवणाणुयोगदारे गुणहाणवण्णणं
[१८७ इदानीं कुशीलेषु पाश्चात्यगुणप्रतिपादनार्थमुत्तरसूत्रमाहसुहुम-सांपराइय-पविट्ठ-सुद्धि-संजदेसुअस्थि उवसमा खवा ॥१८॥
सूक्ष्मश्चासौ साम्परायश्च सूक्ष्मसाम्परायः । तं प्रविष्टा शुद्धिर्येषां संयतानां ते सूक्ष्मसाम्परायप्रविष्टशुद्धिसंयताः। तेषु सन्ति उपशमकाः क्षपकाश्च । सर्वे त एको गुणः सूक्ष्मसाम्परायत्वं प्रत्यभेदात् । अपूर्व इत्यनुवर्तते अनिवृत्तिरिति च । ततस्ताभ्यां सूक्ष्मसाम्परायो' विशेषायतव्यः । अन्यथातीतगुणेभ्यस्तस्याधिक्यानुपपत्तेः । प्रकृती:
तथा वे अत्यन्त निर्मल ध्यानरूप अग्निकी शिखाओंसे कर्म-वनको भस्म करनेवाले होते हैं ॥ ११९, १२० ॥
___ अब कुशील जातिके मुनियों के अन्तिम गुणस्थानके प्रतिपादन करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं
सूक्ष्म-सांपराय-प्रविष्ट-शुद्धि-संयतोंमें उपशमक और क्षपक दोनों होते हैं ॥ १८ ॥
सूक्ष्म कषायको सूक्ष्मसांपराय कहते हैं। उसमें जिन संयतों की शुद्धिने प्रवेश किया है उन्हें सूक्ष्म-सांपराय-प्रविष्ट-शुद्धि-संयत कहते हैं। उनमें उपशमक और क्षपक दोनों होते हैं।
क्ष्मसापरायकी अपेक्षा उनमें भेद नहीं होनेसे उपशमक और क्षपक इन दोनोंका एक ही गुणस्थान होता है। इस गुणस्थानमें अपूर्व और अनिवृत्ति इन दोनों विशेषणों की अनुवृत्ति होती है। इसलिये ये दोनों विशेषण भी सूक्ष्म-सांपराय-शुद्धि-संयतके साथ जोड़ लेना चाहिये। अन्यथा पूर्ववर्ती गुणस्थानोंसे इस गुणस्थानकी कोई भी विशेषता नहीं बन सकती है।
विशेषार्थ- यदि दशवें गुणस्थानमें अपूर्व विशेषणकी अनुवृत्ति नहीं होगी तो उसमें प्रतिसमय अपूर्व अपूर्व परिणामोंकी सिद्धि नहीं हो सकेगी। और अनिवृत्ति विशेषणकी अनुवृत्ति नहीं मानने पर एक समयवर्ती जीवोंके परिणामों में समानता और कौके क्षपण और उपशमनकी योग्यता सिद्ध नहीं होगी। इसलिये पूर्व गुणस्थानोंसे इसमें सर्वथा भिन्न जातिके ही परिणाम होते हैं इस बातके सिद्ध करनेके लिये अपूर्व और अनिवृत्ति इन दो विशेषणोंकी अनुवृत्ति कर लेना चाहिये। इसप्रकार इस गुणस्थानमें अपूर्वता, आनिवृत्तिपना और सूक्ष्मसांपरायपनारूप विशेषता सिद्ध हो जाती है।
१ संज्वलनलोभस्य अगूनसंख्येयतमस्य खण्डस्यासंख्येयानि खण्डाने वेदयमानोऽनुभवन् उपशमकः क्षपको वा भवति । सोऽन्तर्महत कालं यावत्सूक्ष्मसंपरायो भण्यते |xx सुहमसंपराइयं जो वञ्चति सो सुहमसंपरागो। सहम नाम थोव । कई थोत्र ? आउयमोहणिलवजाओ छ कम्मपयडीओ सिटिलबंधणबद्धाओ अप्पकालहितिकाओ महाणुभावाओ अप्पदेसगाओ सहुमसंपरागरस वन्झाति । एवं थोवं सपराइयं कम्मं तं स बज्झाति । सुहमो संपरागो वा जस्स सो सुहमसंपरागो, सोय असंखेज्जसमइओ अंतोमहतिओ वितुममाणपरिणामो वा पडियत्तमाणपरिणामो वा भवति चि । अभि. रा. को. [ सुहमसंपराय ]
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org