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________________ १, १, २.] संत-परूपणाणुयोगद्दारे मग्गणासरूववण्णणं [१३१ इमेसि' एतेषाम् । न च प्रत्यक्षनिर्देशोऽनुपपन्नः आगमाहितसंस्कारस्याचार्यस्यापरोक्षचतुर्दशभावजीवसमासस्य तदविरोधात् । जीवाः समस्यन्ते एष्विति जीवसमासा': । चतुर्दश च ते जीवसमासाश्च चतुर्दशजीवसमासाः । तेषां चतुर्दशानां जीवसमासानां चतुर्दशगुणस्थानानामित्यर्थः । तेषां मार्गणा गवेषणमन्वेषणमित्यर्थः । मार्गणा एवार्थः प्रयोजनं मार्गणार्थस्तस्य भावो मार्गणार्थता तस्यां मार्गणार्थतायाम् । तस्यामिति तत्र । ' इमानि ' इत्यनेन भावमार्गणास्थानानि प्रत्यक्षीभूतानि निर्दिश्यन्ते । नार्थमार्गणस्थानानि तेषां देशकालस्वभावविप्रकृष्टानां प्रत्यक्षतानुपपत्तेः । तानि च मार्गणस्थानानि चतुर्दशैव भवन्ति, मार्गणस्थानसंख्याया न्यूनाधिकभावप्रतिषेधफल एवकारः । किं मार्गणं नाम ? चतुर्दश जीवसमासाः सदादिविशिष्टाः माय॑न्तेऽस्मिन्ननेन वेति मार्गणम् । उत्तं च - _ 'एत्तो' इत्यादि सूत्र में जो ' इमेसिं' पद आया है उससे जो प्रत्यक्षीभूत पदार्थका निर्देश होता है वह अनुपपन्न नहीं है, क्योंकि, जिनकी आत्मा आगमाभ्याससे संस्कृत है ऐसे आचार्यके भावरूप चौदह जीवसमास प्रत्यक्षीभूत हैं। अतएव 'इमेसिं' इस पदके प्रयोग करनेमें कोई विरोध नहीं आता है । अनन्तानन्त जीव और उनके भेद-प्रभेदोंका जिनमें संग्रह किया जाय उन्हें जीवसमास कहते हैं। वे जीवसमास चौदह होते हैं। उन चौदह जीवसमासोंसे यहां पर चौदह गुणस्थान विवक्षित हैं। अर्थात् जीवसमासका अर्थ यहां पर गुणस्थान लेना चाहिये । मार्गणा, गवेषणा और अन्वेषण ये तीनों शब्द एकार्थवाची हैं। मार्गणारूप प्रयोजनको मार्गणार्थ कहते हैं। मार्गणार्थ अर्थात् मागणारूप प्रयोजनके भाव अर्थात् विशेषताको मार्गणार्थता कहते हैं । उस मार्गणारूप प्रयोजनकी विवक्षा होने पर, यहां पर इसी अर्थमें 'तत्थ' यह पद आया है। इमानि ' इस पदसे प्रत्यक्षीभूत भावमार्गणास्थानोंका ग्रहण करना चाहिये। द्रव्यमार्गणाओंका ग्रहण नहीं किया गया है, क्योंकि, द्रव्यमार्गणाएं देश, काल और स्वभावकी अपेक्षा दूरवर्ती हैं। अतएव अल्पज्ञानियों को उनका प्रत्यक्ष ज्ञान नहीं हो सकता है। वे मार्गणास्थान भी चौदह ही होते हैं। यहां सूत्रमें जो 'एव' पद दिया है उसका फल या प्रयोजन मार्गणास्थानकी संख्याके न्यूनाधिकभावका निषेध करना है। शंका ----मार्गणा किसे कहते है ? समाधान-सल, संख्या आदि अनुयोगद्वारोंसे युक्त चौदह जीवसमास जिसमें या जिसके द्वारा खोजे जाते हैं उसे मार्गणा कहते हैं। कहा भी है ....... १ कथमियं 'जीवसमास ' इति संज्ञा गुणस्थानस्य जाता ? इति चेज्जीवाः समस्यन्ते संक्षिप्यन्ते एष्विति जीवसमासाः । अथवा जीवाः सम्यगासते एप्विति जीवसमासा इत्यत्र प्रकरणसामर्थेन गुणस्थानान्येव जीवसमासशब्देनोच्यन्ते । गो. जी., जी. प्र., टी. १०. . . . . . . .. . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001395
Book TitleShatkhandagama Pustak 01
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1939
Total Pages560
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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