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________________ न १३० ] क्खंडागमे जीवाणं [ १, १, २. तदो ङिदिबंधो दुविहो, मूलपयडिट्ठिदिबंधो उत्तरपयडिट्ठिदिबंधो चेदि । तत्थ जो सो मूलप डिडिदिबंधो सो थप्पो । जो सो उत्तरपयडिट्ठिदिबंधो तस्स चउवीस अणियोगद्दाराणि । तं जहा, अद्धाछेदो सव्त्रबंधो गोसव्वबंधो उकस्सबंधो अणुकरसबंधो जहण्णबंधो अजहण्णबंधो सादियबंधो अगादियबंधो धुवबंधो अद्भुवबंधो बंधसामित्तविचयो बंधकालो बंधंतरं बंधसण्णियासो णाणाजीवेहि मंगविचयो भागाभागानुगमो परिमाणाणुगमो खेत्तागमो पोसणाणुगमो कालाणुगमो अंतराणुगमो भावागुगमो अध्याबहुगाणुगमो चेदि । तत्थ अद्धाछेदो दुविहो, जहण्णट्ठिदिअद्धाछेदो उकस्सहिदिअद्धाछेदो चेदि । जहणडिदिअद्धाछेदादो जहण्णहिदी णिग्गदा । उक्कस्सट्टिदिअद्धाछेदादो उकस्सट्ठिदी णिग्गदा । पुणो सुत्तादो सम्मनुष्पत्ती णिग्गया । वियाहपण्णत्तीदो गदिरागदी णिग्गदा । संपहि पुत्रं उत्तपयडिसमुत्तिणा द्वाणसमुक्कित्तणा तिण्णि महादंडया एदाणं पंचण्हमुवरि संहि पुवृत्त - जहण्णहिदिअद्वाछेदं उकस्सट्ठिदिअद्धाछेदं सम्मपत्तिं गदरागदिं च पक्खिते चूलियाए णव अहियारा भवंति । एदं सव्वमवि मणेण अवहारिय एतो ' इदि उत्तं भयवदा पुष्फयंतेण । 4 स्थितिबन्ध दो प्रकारका है, मूलप्रकृतिस्थितिबन्ध और उत्तरप्रकृतिस्थितिबन्ध | उनमें से मूलप्रकृतिस्थितिबन्धका वर्णन स्थगित करके जो उत्तरप्रकृतिस्थितिबन्धके चौवीस अनुयोगद्वार हैं उनका कथन करते हैं । वे इसप्रकार हैं, अर्धच्छेद, सर्वबन्ध, नोसर्वबन्ध, उत्कृटबन्ध, अनुत्कृष्टबन्ध, जघन्यबन्ध, अजघन्यबन्ध, सादिबन्ध, अनादिबन्ध, ध्रुवबन्ध, अध्रुवबन्ध, बन्धस्वामित्वविचय, बन्धकाल, बन्धान्तर, बन्धसन्निकर्ष, नाना जीवों की अपेक्षा भंगविचय, भागाभागानुगम, परिमाणानुगम, क्षेत्रानुगम, स्पर्शनानुगम, कालानुगम, अन्तरानुगम, भावानुगम और अल्पबहुत्वानुगम। इनमें अर्धच्छेद दो प्रकारका है, जघन्यस्थिति- अर्धच्छेद और उत्कृष्टस्थिति- अर्धच्छेद । इनमें जघन्यस्थिति- अर्धच्छेद से जघन्यस्थिति निकली है और उत्कृष्ट स्थितिअर्धच्छेद से उत्कृष्ट स्थिति निकली है। सूत्र से सम्यक्त्वोत्पत्ति नामका अधिकार निकला है और व्याख्याप्रज्ञप्ति से गति आगति नामका अधिकार निकला है । अब नौ चूलिकाओं का उत्पत्तिक्रम बताते हैं, पहले जो एकैके त्तरप्रकृति अधिकारके समुत्कीर्तना नामके प्रथम अधिकारसे प्रकृतिसमुत्कीर्तना, स्थानसमुत्कीर्तना और तीन महाrussia निकलने का उल्लेख कर आये हैं, उन पाचोंमें अभी कहे गये जघन्यस्थिति- अर्धच्छेद, उत्कृष्टस्थिति - अर्धच्छेद, सम्यक्त्वोत्पत्ति और गति आगति इन चार अधिकारोंके मिला देने पर चूलिकाके नौ अधिकार हो जाते हैं । इस समस्त कथनको मनमें निश्चय करके भगवान् पुष्पदन्तने ' एतो ' इत्यादि सूत्र कहा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001395
Book TitleShatkhandagama Pustak 01
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1939
Total Pages560
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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