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११४] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १, २. कोडीओ एगूण-पंचास-लक्ख छायाल सहस्स-पदाणि १०४९४६०. ० ।
एत्थ किं परियम्मादो, किं सुत्तादो ? एवं पुच्छा सव्वेसि । णो परियम्मादो, गो सुत्तादो, एवं वारणा सब्वेसि । पुधगयादो। तस्स उवकमो पंचविहो, आणुपुब्बी भामं पमाणं वत्तव्यदा अत्थाहियारो चेदि । तत्थाणुपुत्री तिविहा, पुवाणुपुची पच्छाणुपुव्वी जत्थतत्थाणुपुत्री चेदि । एत्थ पुवाणुपुबीए गणिजमाणे चउत्थादो, पच्छाणुषुव्वीए मणिजमाणे विदियादो, जत्थतत्थाणुपुचीए गणिजमाणे पुव्वगयादो । पुब्वाणं गयं पत्त-पुव्य-सरूवं वा पुरगयमिदि गुणणामं । अक्खर-पद-संघाद-पडिवत्तिअणियोगद्दारेहि संखेज, अत्थदो पुण अणंतं । वत्तव्बदा ससमयवत्तवदा । अत्थाधियारो चोद्दसविहो । तं जहा, उत्पादपूर्व अग्रायणीयं वीयर्यानुप्रवादं अस्तिनास्तिप्रवादं ज्ञानप्रवाद सत्यप्रवाई आत्मप्रवादं कर्मप्रवाई प्रत्याख्याननामधेयं विद्यानुप्रवादं कल्याणनामधेयं प्राणावायं क्रियाविशालं लोकबिन्दुसारमिति ।
तत्थ उप्पादपुव्वं दसहं वत्थूणं १० वे-सद-पाहुडाणं २०० कोडि-पदेहि
छयालीस हजार पद है।
इस जीवस्थान शास्त्रमें क्या परिकर्मसे प्रयोजन है ? क्या सूत्रसे प्रयोजन है ? इसतरह सबके विषय में पृच्छा करनी चाहिये। यहां पर परिकर्मसे प्रयोजन नहीं है, सूत्रसे प्रयोजन नहीं है इसतरह सबका निषेध करके यहां पर पूर्वगतसे प्रयोजन है ऐसा उत्तर देना चाहिये। उसका उपक्रम पांच प्रकारका है, अनुपूर्वी, नाम, प्रमाण, वक्तव्यता और अर्थाधिकार । उनमेंसे, पूर्वानुपूर्वी, पश्चादानुपूर्वी और यथातथानुपूर्वीके भेदसे आनुपूर्वी तीन प्रकारकी है। यहां पूर्वानुपूर्वीसे गिनने पर चौथे भेदसे, पश्चादानुपूर्वीसे गिननेपर दूसरे भेदसे और यथातथानुपूर्वीसे गिनने पर पूर्वगतसे प्रयोजन है । जो पूर्वोको प्राप्त हो, अथवा जिसने पूर्वोके स्वरूपको प्राप्त कर लिया हो उसे पूर्वगत कहते हैं। इसतरह 'पूर्वगत' यह गोण्यनाम है। वह अक्षर, पद, संघात, प्रतिपत्ति और अनुयोगद्वारकी अपेक्षा संख्यात और अर्थकी अपेक्षा अनन्त-प्रमाण है। तीनों वक्तव्यताओंमेंसे यहां स्वसमयवक्तव्यता समझना चाहिये । अधिकारके चौदह भेद हैं। बे ये हैं, उत्पादपूर्व, अग्रायणीयपूर्व, वीर्यानुप्रवादपूर्व, अस्तिनास्तिप्रवादपूर्व, ज्ञानप्रवादपूर्व, सत्यप्रवादपूर्व, आत्मप्रवादपूर्व, कर्मप्रवादपूर्व, प्रत्याख्यानपूर्व, विद्यानुप्रवादपूर्व, कल्याणवादपूर्व, प्राणावायपूर्व, क्रियाविशालपूर्व और लोकबिन्दुसारपूर्व। ' उनमेंसे, उत्पादपूर्व दश वस्तुगत दोसौ प्राभृतोंके एक करोड़ पदोंद्वारा जीव, काल
१ वस्तुनः द्रव्यस्योत्पादव्ययध्रौव्याद्यनेकधर्मपूरकमुत्पादपूर्वम् । तच्च, जीवादिद्रव्याणां नानानयविषयक्रमयोगपद्यसंभावितोपादव्ययप्रौव्याणि त्रिकालगोचराणि नवधर्मा भवन्ति । तत्परिणतं द्रव्यमपि नवविधम्, उत्पन्न उत्पद्यमानं उत्पत्स्यमानं नष्टं नश्यत् नक्ष्यत् स्थितं तिष्ठत् स्थास्यदिति नवप्रकारा भवन्ति । उत्पादादीनां प्रत्येक नवविधत्वसंभवादकाशीतिविकल्पधर्मपरिणतद्रव्यवर्णनं करोति । गो. जी., जी. प्र., टी. ३६६.
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