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९४) छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १, २. जहण्णेण आवलियाए असंखेज्जदि-भागे भूदं भविस्सं च जाणदि । उक्कस्सेण असंखेज्जलोगमेत्त-समएसु अदीदमणागयं च जाणदि। दोण्हं पि विच्चालमजहण्ण-अणुक्कस्सोही जाणदि । भावदो पुच-णिरूविद-दव्वस्स सतिं जाणदि।
मणपज्जवणाणं णाम पर-मणो-गयाइं मुत्ति-दव्याई तेण मणेण सह पञ्चक्ख जाणदि। दव्यदो जहण्णेण एग-समय-ओरालिय-सरीर-णिज्जरं जाणदि । उक्कस्सेण एग-समयपडिबद्धस्स कम्मइय-दव्वस्स अणंतिम-भागं जाणदि । खेत्तदो जहण्णेण गाउव-पुधत्तं । उकस्सेण माणुस-खेत्तस्संतो जाणदि, णो अहिद्धा । कालदो जहण्णेण दो तिणि भव
अनागत पर्यायोंको जानता है। अजघन्य और अनुत्कृष्ट (मध्यम) अवधिज्ञान, जघन्य और उस्कृष्टके अन्तरालगत कालभेदोंको जानता है। भावकी अपेक्षा अवधिज्ञान द्रव्यप्रमाणसे पहले निरूपण किये गये द्रव्यको शक्तिको जानता है ।
जो दूसरोंके मनोगत मूर्तीक द्रव्योंको उस मनके साथ प्रत्यक्ष जानता है उसे मनःपर्ययज्ञान कहते हैं। मनःपर्ययशान द्रव्यकी अपेक्षा जघन्यरूपले एक समयमें होनेवाले
औदारिकशरीरके निर्जरारूप द्रव्यतकको जानता है। उत्कृष्टरूपसे कार्माणद्रव्यके अर्थात् आठ कर्मों के एक समयमें बंधे हुए समयप्रबद्धरूप द्रव्यके अनन्त भागों से एक भागतकको जानता है। क्षेत्रकी अपेक्षा जघन्यरूपसे गव्यूतिपृथक्त्वे, अर्थात् दो, तीन कोस तक क्षेत्रको जानता है, और उत्कृष्ट रूपसे मनुष्यक्षेत्रके भीतर तक जानता है। मनुष्यक्षेत्रके बाहर नहीं जानता है। (यहांपर मनुष्यक्षेत्रसे प्रयोजन विष्कम्भरूप मनुष्यक्षेत्रसे है, वृत्तरूप मनुष्यक्षेत्रसे नहीं है।) कालकी अपेक्षा जघन्यरूपसे दो, तीन भवोंको ग्रहण करता है, और उत्कृष्टरूपसे असंख्यात
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१ णोकम्मुरालसंचं मज्ज्ञिमजोगजियं सविस्सचयं .। लोयविभत्तं जाणदि अवरोही दव्वदो णियमा॥ सहमणिगोदअपज्जत्तयस्स जादरस तवियसमयम्हि । अवरोगाहणमाणं जहण्णयं ओहिखेत्त तु ॥ आवलि असंखभार्ग तादभविस्स च कालदो अवरं । ओही जाणदि भावे कालअसंखेज्जमागं तु ॥ सव्वाबहिस्स एको परमागू होदि णिवियप्पो सो। गंगामहाणइस्स पवाहो व धुवो हवे हारो॥ परमोहिदव्वभेदा जेत्तियमेत्ता हु तेत्तिया होति । तस्सेव खेतकालवियप्पा विसया असंखगुणिदकमा ॥ आवलिअसंखभागा जहण्णदव्वस्स होति पन्जाया । कालस्स जहण्णादो असंखगुणहीणमेत्ता हु ॥ सबोहे ति कमसो आवलिअसंखभागगुणिदकमा | दव्वाणं भावाणं पदसंखा सरिसगा होति ॥ गो. जी. ३७७, ३७८, ३८२, ४१५, ४१६, ४२२, ४२३. तत्थ दव्वओ णं ओहिनाणी जहपणेणं अर्णताइं रूविदवाई जाणइ पासइ, उकोसेणं सवाई रूविदवाई जाणइ पासइ । खित्तओ णं ओहिनाणी जपणेणं अंगुलस्स असंखिज्जइभागं जाणइ पासइ, उक्कोसेणं असंखिज्जाई अलीगे लोगप्पमाणमित्ताई खंडाइं जाणइ पासह । कालओ णं ओहिनाणी जहन्नेणं आवलिआए असंखिज्जइभागं जाणइ पासइ, उक्कोसेणं असंखिज्जाओ उस्स प्पिणीओ अवसप्पिीओ अईयमणागयं च कालं जाणइ पासइ । भावओण
ओहिनाणी जहन्नेणं अणते भावे जाणइ पासइ, उकस्सेणं वि अर्णते भावे जाणइ पासइ, सव्वभावाणमणंतमार्ग जाणइ पासइ । न. सू. १६.
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