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________________ [५७ १, १, १.] संत-परूवणाणुयोगद्दारे मंगलायरणं अष्टादशसंख्यानां श्रेणीनामधिपतिर्विनम्राणाम् । राजा स्यान्मुकुटधरः कल्पतरुः सेवमानानाम् ॥ ३६ ॥ एत्थुवउजंतीओ गाहाओ हय हस्थि-रहाणहिवा सेणावइ-मंति-सेहि-दंडवई । सुद्द-क्खत्तिय-बम्हण-वइसा तह महयरा चेव ॥ ३७॥ गणरायमच्च-तलवर-पुरोहिया दप्पिया महामत्ता । अट्ठारह सेणीओ पयाइणा मेलिया होति ॥ ३८ ॥ पृतनाङ्ग-दण्डनायक-वर्ण-वणिग्भुग-गणेड्-महामात्राश्च । मन्त्रि-पुरोहित-सेनान्यमात्य-तलवर-महत्तराः स्युः श्रेण्यः ॥ ३९ ॥ पश्चशतनरपतीनामधिराजोऽधीश्वरो भवति लोके । राजसहस्राधिपतिः प्रतीयतेऽसौ महाराजः ॥ ४० ॥ द्विसहस्रराजनाथो मनीषिभिर्वर्ण्यतेऽर्धमण्डलिकः । मण्डलिकश्च तथा स्याच्चतुःसहस्रावनीशपतिः ॥ ४१॥ जो नम्रीभूत अठारह श्रेणियोंका अधिपति हो, मुकुटको धारण करनेवाला हो और सेवा करनेवालोंके लिये कल्पवृक्षके समान हो उसे राजा कहते हैं ॥ ३६ ॥ यहां प्रकरणमें उपयोगी गाथाएं उद्धृत की जाती हैं। घोड़ा, हाथी, रथ इनके अधिपति, सेनापति, मन्त्री, श्रेष्ठी, दण्डपति, शुद्र, सत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य, महत्तर, गणराज, अमात्य, तलवर, पुरोहित, स्वाभिमानी महामात्य और पैदल सेना इसतरह सब मिलाकर अठारह श्रेणियां होती हैं ॥ ३७, ३८॥ __ अथवा हाथी, घोड़ा, रथ और पयादे ये चार सेनाके अंग, दण्डनायक, ब्राह्मण, क्षत्रिय. वैश्य और शूद्र ये चार वर्ण, वणिक्पति, गणराज, महामात्र, मन्त्री, पुरोहित, सेनापति, अमात्य, तलवर और महत्तर ये अठारह श्रेणियां होती हैं ॥ ३९॥ लोकमें पांच सौ राजाओंके अधिपतिको अधिराज कहते हैं, और एक हजार राजाओंके अधिपतिको महाराज कहते हैं ॥ ४०॥ पण्डितजन दो हजार राजाओंके स्वामीको अर्धमण्डलीक कहते हैं और चार हजार राजाओंके स्वामीको मण्डलीक कहते हैं ॥४१॥ ................. १ वररयणमउडधारी सेवयमाणा णवंति दह अहूं। दंता हवेदि राजा जितसत्त समरसंघट्टे ॥ करितुरयरहाहिवई सेणावइ य मंति-सेहि-दंडवई। सुद्धक्खत्तियवइसा हवंति तह महयरा पवरा ॥ गणरायमंतितलवरपुरोहिया मंतया महामंता । बहुविहपइण्णया य अट्ठारसा होंति सेणीओ ॥ ति. प. १,४२-४४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001395
Book TitleShatkhandagama Pustak 01
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1939
Total Pages560
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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