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________________ महाबंधे पदेसबंधाहियारे क्खाण०४ । एवं चेव अणंताणु०४। मिच्छ जह० पदे. विसे० । दुगुं० जह० पदे० अणंतगु० । भय० जह० प० विसे० । हस्स-सोगे जह० पदे० विसे० । रदि-अरदि० जह० पदे० विसे० । अण्णदरवेदे जह० पदे० विसे० । माणसंज० जह० पदे० विसे । कोधसंज० जह० पदे० विसे० । मायासंज० जह० पदे० विसे० । लोभसंज. जह० पदे० विसे० । ६१. सव्वत्थोवा तिरिक्ख-मणुसाऊणं जह० पदे । णिरय-देवाऊणं जह० पदे० असंखेंजगु० । १२. सव्वत्थोवा तिरिक्ख० जह० पदे० । मणुस० जह० पदे० विसे० । देवगदि० जह० पदे० असंखेज्जगु० । णिरय० जह० पदे० असंगु० । सव्वत्थोवा चदुण्णं जादीणं जह० पदे० । एइंदि० जह० पदे० विसे० । सव्वत्थोवा ओरा० जह० पदे० । तेजा. जह० पदे० विसे । कम्म० जह० पदे० विसे० । वेउवि० जह० पदे० असं०गु० । आहार० जह० पदे० असं०गु० । छण्णं संठाणाणं जह० पदे. तुल्लं । सव्वत्थोवा ओरा०अंगो० जह० पदे०। वेउवि०अंगो० जह० पदे० असंगु० । आहार०अंगो० जह० पदे० असं गु० । छण्णं संघडणाणं जह० पदे तुल्लं० । वण्ण प्रदेशाग्र विशेष अधिक है । उससे अप्रत्याख्यानावरण लोभका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। इसी प्रकार प्रत्याख्यानावरणचतुष्कका अल्पबहुत्व जानना चाहिए । तथा इसी प्रकार अनन्तानुबन्धीचतष्कका अल्पबहत्व जानना चाहिए। अनन्तानबन्धी लोभके जघन्य प्रदेशाग्रसे मिथ्यात्वका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे जुगुप्साका जघन्य प्रदेशाग्र अनन्तगुणा है। उससे भयका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे हास्य-शोकका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है । उससे रति-अरतिका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे अन्यतर वेदका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है उससे मानसंज्वलनका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे क्रोधसंज्वलनका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे मायासंज्वलनका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे लोभसंज्वलनका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। १. तिर्यश्चायु और मनुष्यायुका जघन्य प्रदेशाग्र सबसे स्तोक है । उससे नरकायु और देवायुका जघन्य प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है। ६२. तिर्यश्चगतिका जघन्य प्रदेशाम सबसे स्तोक है। उससे मनुष्यगतिका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे देवगतिका जघन्य प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है। उससे नरकगतिका जघन्य प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है। चार जातियोंका जघन्य प्रदेशाग्र सबसे स्तोक है। उससे एकेन्द्रियजातिका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। औदारिक शरीरका जघन्य प्रदेशाम सबसे स्तोक है । उससे तैजसशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे कार्मणशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे वैक्रियिकशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है। उससे आहारकशरीरका जघन्य प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है। छह संस्थानोंका जघन्य प्रदेशाग्र तुल्य है । औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्गका जघन्य प्रदेशाग्र सबसे स्तोक है। उससे वैक्रियिकशरीर पाङ्गका जघन्य प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है। उससे आहारकशरीर आङ्गोपाङ्गका जघन्य प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है । छह संहननीका जघन्य प्रदेशात परस्परमें तुल्य है। वर्ण, गन्ध, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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