________________
अप्पा बहुगपरूवणा
७३
मायासंज० ० उक्क० पदे० विसे० । लोभसंज० उक० पदे० विसे० । पुरिस० उ० पढ़े ० विसे० ।
८२. मायाए ओघो । णवरि मोहे याव इत्थि० । णपुंस० उक्क० पदे० विसे० | कोधसंज० उक्क० पदे० संखेज्जगु० । माणसंज० उक्क० पदे० विसे० । पुरिस० उक्क० पदे० विसे० । मायाए उक्क० पदे० विसे० । लोभसंज० उक० पढ़े० विसे० । लोभक० ओघं ।
८३. मदिरे - सुद- विभंग ० - अब्भव०-मिच्छा० - असण्णि० तिरिक्खोघं । णवरि अण्णदरवेदे ० विसे० ।
८४. आभिणि-सुद-अधि० सत्तण्णं क० ओघभंगो । सव्वत्थोवा मणुसग ० उक्क० पदे० | देवग० उक्क० पदे० विसे० । एवं आणु० । सव्वत्थोवा आहार० उक० पदे० । ओरा० उक्क० पदे० विसे० । वेउन्वि० उक्क० प० विसे० | तेजाक० उक० पदे ० विसे० । कम्म० उक्क० प० विसे० । सव्वत्थोवा आहारंगो० उक० पदे० । रा० अंगो० उक० पदे० विसे० । वेउ० अंगो० उक्क० पढ़े० विसे० । वण्ण-गंध-रस
उससे मायासंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशाम विशेष अधिक है । उससे लोभसंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे पुरुषवेदका उत्कृष्ट प्रदेशाय विशेष अधिक है ।
८२. मायाकषायवाले जीवोंमें ओघके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि मोहनीयकर्ममें स्त्रीवेदके अल्पबहुत्वके प्राप्त होनेतक ही ओघके समान भङ्ग जानना चाहिए । आगे स्त्रीवेदके उत्कृष्ट प्रदेशाप्रसे नपुंसकवेदका उत्कृष्ट प्रदेशाम विशेष अधिक है। उससे क्रोधसंज्वलन का उत्कृष्ट प्रदेशाम संख्यातगुणा है। उससे मानसंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशाय विशेष अधिक है । उससे पुरुषवेदका उत्कृष्ट प्रदेशाय विशेष अधिक है। उससे मायासंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशा विशेष अधिक है। उससे लोभसंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशाम विशेष अधिक है। लोभकषायवाले जीवोंमें ओघके समान भङ्ग है
८३. मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, विभङ्गज्ञानी, अभव्य, मिथ्यादृष्टि और असंज्ञी जीवोंमें सामान्य तिर्योंके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि इनमें अन्यतर वेदका उत्कृष्ट प्रदेशाम विशेष अधिक है ।
८४. आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें सात कर्मोंका भङ्ग ओघके समान है । मनुष्यगतिका उत्कृष्ट प्रदेशाय सबसे स्तोक है। उससे देवगतिका उत्कृष्ट प्रदेशाय विशेष अधिक है। इसी प्रकार आनुपूर्वियांका अल्पबहुत्व जान लेना चाहिए। आहारकशरीरका उत्कृष्ट प्रदेशाम सबसे स्तोक है। उससे औदारिक शरीरका उत्कृष्ट प्रदेशाय विशेष अधिक है । उससे वैक्रियिकशरीरका उत्कृष्ट प्रदेशाय विशेष अधिक है। उससे तैजसशरीरका उत्कृष्ट प्रदेशाम विशेष अधिक है। उससे कार्मणशरीरका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। आहारकशरीर आङ्गोपाङ्गका उत्कृष्ट प्रदेशाम सबसे स्तोक है। उससे औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्गका उत्कृष्ट प्रदेशाम विशेष अधिक है। उससे वैक्रियिकशरीर आङ्गोपाङ्गका उत्कृष्ट प्रदेशाय विशेष अधिक है । वर्ण,
१. आ० प्रतौ 'विसे० । मदि' इति पाठः । २. ता० प्रतौ 'वेड० अंगो० उक्क० विसे । वेउ० अंगो० उक्क० [ ? ] वण्ण' इति पाठः ।
१०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org