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अप्पाबहुगपरूवणा
७१ भंगो । सेसाणं तुल्ला । अणुदिस याव सव्वट्ठ त्ति रहगभंगो । णवरि णामाणं वण्णगंध-रस-फासाणं ओघं । सेसाणं तुल्ला।
७६. पंचिंदि०-तस०२-पंचमण-पंचतचि०-कायजोगि-ओरालि०-चक्खु०अखु०-भवसि०-सण्णि-आहारग ति ओघभंगो। ओरालिमि० सत्तण्णं कम्माणं णिरयभंगो । णामाणं ओघं । णवरि सव्वत्थोवा जस० उक्क० पदे० । अजस० उक्क० पदे० विसे । वेउव्वि०-वेउव्वि०मि० देवोघं ।
७७. आहार-आहारमि० पंचणा०-छदसणा०-दोवेद-पंचंत० ओघं । सव्वत्थोवा दुगुं० उक्क० पदे । भय० उक्क० पदे० विसे.'। हस्स-सोगे उक्क० पदे० विसे० । रदि-अरदि० उक्क० पदे० विसे० । पुरिस० उक्क० पदे० विसे । माणसंज. उक्क० पदे. विसे । कोधसंज० उक्क० पदे० विसे० । मायासंज० उक्क० पदे० विसे । लोभसंज० उ० पदे० विसे० । वण्ण-गंध-रस-फासाणं तुल्ला० । कम्मइग० सत्तण्णं क० णिरयभंगो । णामाणं ओघभंगो।
७८. इत्थि-पुरिस-णqसगवेदेसु छण्णं कम्माणं णिरयभंगो। मोहो ओघो
नारकियोंके समान है। शेष प्रकृतियोंका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र तुल्य है । अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें नारकियोंके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि नामकर्मकी वर्ण, गन्ध, रस
और स्पर्श इन प्रकृतियोंका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र ओघके समान है। तथा शेष प्रकृतियोंका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र तुल्य है।
७६ पञ्चेन्द्रियद्विक, त्रसद्विक, पाँच मनोयोगी, पाँच वचनयोगी, काययोगी, औदारिक काययोगी, चक्षुदर्शनवाले, अचक्षुदर्शनवाले, भव्य, संझी और आहारक जीवोंमें ओघके समान भङ्ग है। औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें सात कर्मोका भङ्ग सामान्य नारकियोंके समान है । नामकमकी प्रकृतियोंका भङ्ग ओघके समान है । इतनी विशेषता है कि यशःकीर्तिका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र सबसे स्तोक है। उससे अयशःकीर्तिका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। वैक्रियिककाययोगी और वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवों में सामान्य देवोंके समान भङ्ग है।
७७.. आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, दो वेदनीय और पाँच अन्तरायका भङ्ग ओघके समान है। जुगुप्साका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र सबसे स्तोक है । उससे भयका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे हास्य-शोकका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे रति-अरतिका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है । उससे पुरुषवेदका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है । उससे मानसंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे क्रोधसंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे मायासंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है । उससे लोभसंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्शका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र परस्परमें तुल्य है। कार्मणकाययोगी जीवोंमें सात कर्मो का भङ्ग सामान्य नारकियोंके समान है। नामकर्मकी प्रकृतियोंका भङ्ग ओघके समान है।
७८. स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी और नपुंसकवेदी जीवोंमें छह कर्मोंका भङ्ग सामान्य नारकियोंके
१. ता० प्रतौ 'भय० [उ०] विसे०' इति पाटः ।
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