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________________ अप्पाबहुगपरूवणा ६६ पदे । जस०. उक० पदे० संखेज्जगु० । ७०. सव्वत्थोवा णीचा० उक्क० पदे० । उच्चा० उक्क० पदे० विसे । ७१. सव्वत्थोवा दाणंत. उक्क० पदे । लाभंत० उक्क० पदे० विसे० । भोगंत. उक्क० पदे० विसे० । परिभोगंत० उक्क० पदे० विसे । विरियंत० उक्क० पदे० विसे। ७२. णिरएसु पंचणा०-णवदंस-पंचंत० ओघं । सव्वत्थोवा अपचक्खाणमाणे उक्क० पदे० । कोधे० उक्क० पदे० विसे । माया० उक्क० पदे० विसे । लोमे० उक्क० पदे० विसे । एवं पञ्चक्खाण०४-अणंताणु०४ । मिच्छ.' उक्क० पदे० विसे। भय० उक० पदे० अणंतगु० । दुगुं० उक्क० पदे० विसे० । हस्स-सोगे उक्क० पदे. विसे । रदि-अरदि० उक० पदे० विसे० । इथि०-णस० उक० पदे० विसे० । पुरिस० उक० पदे० विसे । माणसंज० उक्क० पदे० विसे । कोधसंज० उ० पदे. विसे । मायाए उक्क० पदे० विसे । लोभसंज० उक्क० प० विसे । ७३. दोगदी तुल्ला। सव्वत्थोवा ओरा० उक्क०. प० । तेजाक० उक्क० पदे० और दुःस्वरका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र परस्परमें समान है। अयशःकीर्तिका उत्कृष्ट प्रदेशाप सबसे स्तोक है। उससे यश कीर्तिका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र संख्यातगुणा है। ____७०. नीच गोत्रका उत्कृष्ट प्रदेशाम सबसे स्तोक है। उससे उच्चगोत्रका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। ७१. दानान्तरायका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र सबसे स्तोक है। उससे लाभान्तरायका उत्कृष्ट प्रदेशाम्र विशेष अधिक है। उससे भोगान्तरायका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे परिभोगान्तरायका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे वीर्यान्तरायका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। ७२. नारकियों में पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण और पाँच अन्तरायका भङ्ग ओधके समान है। अप्रत्याख्यानावरण मानका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र सबसे स्तोक है। उससे अप्रत्याख्यानावरण क्रोधका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे अप्रत्याख्यानावरण मायाका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है । उससे अप्रत्याख्यानावरण लोभका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। आगे प्रत्याख्यानावरण चतुष्क और अनन्तानुबन्धी चतुष्कका इसी प्रकार अल्पबहुत्व जानना चाहिए । अनन्तानुबन्धी लोभके उत्कृष्ट प्रदेशाग्रसे मिथ्यात्वका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है । उससे भयका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र अनन्तगुणा है । उससे जुगुप्साका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे हास्य-शोकका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे रति-अरतिका उत्कृष्ट प्रदेशान विशेष अधिक है । उससे स्त्रीवेद-नपुंसकवेदका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है । उससे पुरुषवेदका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है । उससे मान संज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे क्रोधसंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है । उससे मायासंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। उससे लोभ संज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। __७३. दो गतियोंका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र परस्परमें तुल्य है। औदारिक शरीरका उत्कृष्ट १. ता० प्रतौ ‘एवं पञ्चक्खाण०४ अणंताणु०४ मिच्छ०' इति पाठः। २. ता. प्रतौ 'उक्क० [विसे० ] 1 माणसंज.' इति पाठः । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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