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________________ महाबंधे पदेसबंधाहियारे छस्संघ०-दोविहा०-तस-सुभग-दोसर-आदें जह० अट्ठ० । अजह० अट्ठ-बारह । दोआउ०-तिण्णिजादि० जह० अज० खेत्तभंगो । दोआउ०-मणुस०-मणुसाणु०-आदावउच्चागोद० जह• अज० अट्ठचौँ । णिरय०-णिरयाणु० जह० खेत्तभंगो । अजह. छच्चाद्द० । देवगदि-देवाणु० जह० खेत्तभंगो। अजह. पंचचो० । बेउव्वि०-वेउव्वि०अंगो० जह० खेतभंगो। अजह० ऍक्कारह० । उजो०-बादर-जस० जह० अढ० । अजह० अट्ठ-तेरह | सुहुम-अपज०-साधार. जह० खेत्तभंगो। अजह० लोगस्स असंखे सव्वलो। ५०. आभिणि-सुद०-ओधि० मणुसाउ०' जह० अजह० अट्ठचों । सेसाणं आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, दो विहायोगति, त्रस, सुभग, दो स्वर और आदेयका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने त्रसनालीका कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तथा अजघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने सनालीका कुछ कम आठ और कुछ कम बारह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो आयु और तीन जातिका जघन्य और अजघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। दो आयु, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, आतप और उच्चगोत्रका जघन्य और अजघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने त्रसनालीका कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । नरकगति और नरकगत्यानुपूर्वीका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । तथा अजघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने त्रसनालीका कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। देवगति और देवगत्यानुपूर्वीका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । तथा अजघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने त्रसनालीका कुछ कम पाँच बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। वैक्रियिकशरीर और वैक्रियिकशरीर आङ्गोपाङ्गका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। तथा अजघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने वसनालीका कुछ कम ग्यारह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । उद्योत, बादर और यशःकीर्तिका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने त्रसनालीका कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । तथा अजघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने त्रसनालीका कुछ कम आठ और कुछ कम तेरह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणका जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । तथा अजघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। विशेषार्थ-मनोयोगी जीवोंमें पहले स्पर्शनका स्पष्टीकरण कर आये है । उसीके प्रकाशमें यहाँ भी स्पष्टीकरण कर लेना चाहिए । मात्र देवगतिद्विक और वैक्रियिकद्विकका बन्ध करनेवाले जीव यहाँ ऊपर पाँच राजूके भीतर स्पर्शन करते हैं, इसलिए यहाँ देवगतिद्विकका अजघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन त्रसनालीका कुछ कम पाँच बटे चौदह भागप्रमाण कहा है और वैक्रियिकद्विकका अजघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन सनालीका कुछ कम ग्यारह बटे चौदह भागप्रमाण कहा है। ५०. आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें मनुष्यायुका जघन्य और अजघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने त्रसनालीका कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका १ ता० आ० प्रत्योः 'मणुसाणु' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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