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________________ फोसणपरूवणा अणु० सव्वलोगो । छदंस०-बारसक०-सत्तणोक०-[उच्चा०] । उक० छचों । अशु०" सव्वलो० । सेसाणं उ० खेत्तभंगो । अणु० सव्वलो० । णवरि इथि०-चदुसंठा०पंचसंघ०-अप्पसत्थ०-दुस्सर० उक० ऍकारह । अणु० सबलो० । उज्जो०-जस० उक्क० छच्चों । अणु० सव्वलो० । देवगदिपंच० उक्क० अणु० खेत्तभंगो । ३८. जह० पगदं । दुवि०-ओघे० आदे० । ओघे० दोआउ०-आहार०२ जह. कुछ कम बारह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तथा इनका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनवाले जीवोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । छह दर्शनावरण, बारह कपाय, सात नोकपाय और उच्चगोत्रका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने त्रसनालीका कुछ कम छह बटे चौदह भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तथा इनका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । शेप प्रकृतियोंका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन अत्रक समान है । तथा इनका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद, चार संस्थान, पाँच संहनन, अप्रशस्त विहायोगति और दुःस्वरका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने वसनालीका कुछ कम ग्यारह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पशन किया है। तथा इनका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवीने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । उद्योत और यशःकीर्तिका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने बसनालीका कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । तथा इनका अनुत्कृष्ट प्रदेशवन्ध करनेवाले जीवान सर्वलोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। देवगतिपञ्चकका उत्कृष्ट और अनुकप प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । विशेषार्थ-यहाँ पाँच ज्ञानावरणादिका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध चारों गतिके संज्ञा जीव करते हैं, इसलिए इनका इस पदकी अपेक्षा त्रसनालीका कुछ कम बारह बटे चौदह भागप्रमाण स्पर्शन कहा है। इस स्पर्शनमें हमें कार्मणकाययोगी जीवोंमें कहे गये स्पशनसे दो विशेषताएँ दिखलाई दे रहीं हैं-एक तो वहाँ 'णवरि' कहकर मिथ्यात्वसम्बन्धी प्रकृतियोंका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनवाले जीवोंका स्पर्शन त्रसनालीका कछ कम ग्यारह बटे चौदह भागप्रमाण कहा है जो यहाँ नहीं कहा है । दूसरे वहाँ परघात, पर्याप्त, स्थिर और शुभ इन प्रकृतियोंका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करने वाले जीवोंका स्पर्शन त्रसनालीका कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण कहा है जो यहाँ त्रसनाली का कुछ कम बारह बटे चौदह भागप्रमाण कहा है। इन दो विशेषताओंका क्या कारण हो सकता है,वही यहाँ देखना है। यहाँ ऐसा मालूम पड़ता है कि कार्मणकाययोगमें स्पर्शन कहते समय मिथ्यात्व आदिका उत्कृष्ट प्रदेशवन्ध करनेवाले जीवोंका ऊपर कछ कम पांच राजू स्पशन विवक्षित रहता है और यहाँ वह कल कम छह राज विवक्षित कर लिया गया है। तथा स्वामित्व प्ररूपणामें परघात आदिका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध तीन गतिका संज्ञी जीव करता है, इस अभिप्रायको ध्यानमें रखकर कार्मणकाययोगमें इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने बसनालीका कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है,यह कहा है और यहाँपर इनके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी चारों गतिका जीव होता है,ऐसा मानकर स्पर्शन कहा है। इन पाँच ज्ञानावरणादिका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन सर्व लोकप्रमाण है,यह स्पष्ट ही है। शेप स्पर्शनका स्पष्टीकरण जैसे कार्मणकाययोगके समय किया है उसी प्रकार यहाँ भी कर लेना चाहिए। तथा समचतुरस्त्र संस्थान आदिके सम्बन्धमें जो विशेषता कही है, उसे भी जान लेनी चाहिए। ३८. जघन्यका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे दो १. ता० प्रती 'सत्तणोक० उ० छच्चो० अणु०' आ० प्रतौ 'सत्ताक० अणु०' इति पाठः । २. आ० प्रती 'सेसाणं खेत्तभंगो' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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