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________________ ४९ फोसणपरूवणा अपचक्खाण०४-छण्णोक० उक्क० [अट्ट । अणुक० ] अट्ठ-णव० । पच्चक्खाण०४ उक्क० दिवड्डौ । अणु० अट्ठ-णव० । चदुसंज० उक्क० खेत्तभंगो। अणु० अट्ठ-णव० । इथि०-पुरिस०-चदुसंठा०-ओरा०अंगो०-छस्संघ०-अप्पसत्थ०-दुस्सर०-[उच्चा०] उक्क० अणु० अट्ठचों । एवं मणुसगदिदुगं । दोआउ० उक्क० अणु० अट्ठचों। देवाउ०आहारदुर्ग उक्क० अणु० खेत्तभंगो । देवगदि०४ उक्क० अणु० दिवड्डौं । पंचिंदि०समचदु०-पसत्थ०-तस-सुभगादितिण्णि० उक्क० दिवड्डचों । अणु० अट्ठौँ । तित्थ० उक्क० खेत्तभंगो। अणु० अट्ठों । एवं पम्माए। णवरि सगफोसणं णादूण णेदव्यं । एवं सुक्काए वि। णवरि पंचणाणावरणादिपढमदंडओ उक्क० ईत्तभंगो। अणु० छच्चोंद० । सेसाणं अप्पप्पणो फोसणं णेदव्वं । भवसि० ओघो। अन्तरायका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने त्रसनालीका कुछ कम आठ और कुछ कम नौ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। छह दर्शनावरण, अप्रत्याख्यानावरणचतुष्क और छह नोकषायका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने त्रसनालीका कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । तथा इनका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने बसनालीका कुछ कम आठ और कुछ कम नौ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । प्रत्याख्यानावरणचतुष्कका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने बसनालीका कुछ कम डेढ़ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तथा इनका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने त्रसनालीका कुछ कम आठ और कुछ कम नौ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। चार संज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान तथा इनका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवाने असनालीका कुछ कम आठ और कुछ कम नौ वटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। वीवेद, पुरुषवेद, चार संस्थान, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, अप्रशस्त विहायोगति, दुःस्वर और उच्चगोत्रका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने त्रसनालीका कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार मनुष्यगतिद्विककी अपेक्षा स्पर्शन जानना चाहिए। दो आयुका उत्कृ और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने त्रसनालीका कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। देवायु और आहारकद्विकका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है।। देवगतिचतुष्कका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने त्रसनालीका कुछ कम डेढ़ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। पञ्चेन्द्रियजाति, समचतुरस्रसंस्थान, प्रशस्त विहायोगति, त्रस और सुभग आदि तीनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने त्रसनालीका कुछ कम डेढ़ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तथा इनका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने त्रसनालीका कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तीर्थङ्कर प्रकृतिका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। तथा अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने बसनालीका कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार पद्मलेश्यामें भी जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि अपना स्पर्शन जानकर ले जाना चाहिए | तथा इसी प्रकार शुक्ललेश्यामें भी जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इसमें पाँच ज्ञानावरणादि प्रथमदण्डकका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। तथा इनका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने त्रसनालीका कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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