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महाबंधे पदेसबंधाहियारे उक्क० अणु० अट्ठचौदस । तिरिक्ख०-तिण्णिसरीर-हुंड०-वण्ण०४-तिरिक्खाणु०अगु०४-उज्जो०-चादर-पजत्त-पत्ते-थिरादितिण्णियु०-दूभग-अणार्दै०-णिमि० उक्क० अट्ठ-णव० । अणु० अट्ठ-तेरह० । एइंदि०-थावर० उक्क० अणु० अट्ठ-णव० ।
२३. वेउव्वियमि०-आहार-आहारमि०-अवगदवे-मणपज०-संजद-सामाइ०छेदो०-परिहार०-सुहुमसंप० उक्क० अणु० खेत्तमंगो।।
२४. कम्मइ० पंचणाणा०-थीणगिद्धि०३-दोवेद०-मिच्छ०-अणंताणु०४णस०-णीचा०-पंचंत० उक्क० बारह० । णवरि मिच्छ० पगदीणं उक्क० ऍक्कारह ।
करनेवाले जीवोंने असनालीके कुछ कम आठ घटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो आयु, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, आतप, तीर्थङ्कर और उच्चगोत्रका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशवन्ध करनेवाले जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । तिर्यश्चगति, तीन शरीर, हुण्डसंस्थान, वर्णचतुष्क, तिर्यञ्चगत्यानुपूवा, अगुरुलघुचतुष्क, उद्योत, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर आदि तीन युगल, दुर्भग, अनादेय और निर्माणका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवाने त्रसनालोके कुछ कम आठ और कुछ कम नौ वटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । तथा अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम आठ और कुछ कम तेरह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका म्पशन किया है । एकेन्द्रियजाति और स्थावरके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका बन्ध करनेवाले जीवोंने बसनालीके कुछ कम आठ और कुछ कम नौ वटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
विशेपार्थ-क्रियिककाययोगमें विहारवत्स्वस्थानकी अपेक्षा त्रसनालीके कुछ कम चौदह भागप्रमाण स्पर्शन है । मारणान्तिक समुद्भातकी अपेक्षा त्रसनालीके कुछ कम तेरह बटे चौदह भाग प्रमाण स्पर्शन है। एकेन्द्रियों में मारणान्तिक समुद्भात करनेपर असनाली के कुछ कम नौ वटे चौदह भागप्रमाण स्पर्शन है । तथा नारकियांका तिर्यश्चों और मनुष्योंमें व देवोंका तिर्यञ्चों और मनुष्यों में मारणान्तिक समुद्भात करनेपर मिलाकर बसनालीके कुछ कम बारह बटे चौदह भागप्रमाण स्पर्शन है, इसलिए यहाँ जिन प्रकृतियोंका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका जो स्पर्शन कहा है, वह पूर्वोक्त स्पर्शनको देखकर अपने-अपने स्वामित्वके अनुसार घटित कर लेना चाहिए । अन्य विशेषता न होनेसे यहाँ हमने उसे अलग-अलग घटित करके नहीं बतलाया है।
२३. वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, अपगतवेदवाले, मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत और सूक्ष्ममाम्परायसंयत जीवों में अपनी-अपनी प्रकृतियों का उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है।
विशेपार्थ-इन सत्र मार्गणाओंमें अपना-अपना स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण ही है, इसलिए यहाँ अपनी-अपनी प्रकृतियोंके दोनों पदवालोंका स्पर्शन उक्तप्रमाण प्राप्त होनेसे क्षेत्रके समान कहा है, क्योंकि यहाँ क्षेत्र भी इतना ही है।
२४. कार्मणकाययोगी जीवों में पाँच ज्ञानावरण, स्त्यानगृद्धित्रिक, दो वेदनीय, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धीचतुष्क, नपुंसकवेद, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करने वाले जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम बारह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्व प्रकृतियोंका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने बसनालीके कुछ कम
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