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महाबंधे पदेसबंधाहियारे सव्वपगदीणं उक्क० अणु० सव्वलो० । णवरि मणुसाउ० उक्क० अणु० लो० असंखें. सव्वलो०।
१७. पुढवि०-आउ० तेउ० एइंदियपगदीणं उक्क० लोगस्स असंखे० सव्वलोगो । अणु० सव्वलो० । सेसाणं तसपगदीणं आदावं च उक्क० लोगस्स असंखें । अणु० सव्वलो० । दोआउ० [एइंदिय ] ओघं । एवं बादरपुढवि०-आउ०-तेउ० । बादरपुढवि०-आउ०-तेउ०पजत्तयाणं एइंदियसंजुत्ताणं उक्क० अणु० सव्वलो० । नससंजुत्ताणं आदावं च उक्क० अणु० लोगस्स असंखें । एवं वाउकाइयाणं पि । णवरि यम्हि लोगस्स असंखें तम्हि लोगस्स संखेंजदिभागो कादव्यो । विशेषता है कि मनुष्यायुका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
विशेपार्थ-बादर एकेन्द्रिय और इनके पर्याप्त व अपर्याप्त जीवों में एकेन्द्रियजाति संयुक्त प्रकृतियोंका दो प्रकारका प्रदेशबन्ध मारणान्तिक समदातके समय भी सम्भव है, इस दोनों पदोंकी अपेक्षा सर्व लोकप्रमाण स्पर्शन कहा है। इनमें स्त्रीवेद आदिका उत्कृष्ट व अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध एकेन्द्रियोंमें समुद्भात करनेवाले जीवोंके नहीं होता। आतपका होकर भी वह बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकोंमें समुद्भात करनेवाले जीवोंके ही होता है और तिर्यञ्चायुका मारणान्तिक समुद्भातके समय बन्ध नहीं होता, इसलिए यहाँ इन कमां के दोनों पदवालोंका लोकके संख्यातवें भागप्रमाण स्पर्शन कहा है। तथा मनुष्यायु आर मनुष्यगति आदि तीनका वायुकायिक जीव वन्ध नहीं करते, इसलिए यहाँ मनुष्यायु आदि चार कर्मोके दोनों पदवालोंका लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण स्पर्शन कहा है। सव सूक्ष्म जीव सर्व लोकमें पाये जाते हैं, इसलिए इनमें मनुप्यायुके विना सब प्रकृतियोंके दोनों पदवालोंका सर्व लोकप्रमाण स्पर्शन कहा है। तथा इनमें मनुष्यायुका बन्ध करनेवाले जीवोंका वर्तमान स्पर्शन तो लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है,पर अतीत स्पशन सर्व लोकप्रमाण बन जानसे यह वतमानकी अपेक्षा लोकके असंख्यातव भागप्रमाण और अतीतकी अपेक्षा सर्व लोकप्रमाण कहा है।
१७ पृथिवीकायिक, जलकायिक और अग्निकायिक जीवाम एकेन्द्रिय प्रकृतियोंका उत्कृष्ट प्रदेशवन्ध करनेवाले जीवाने लोकके असंख्यातव भागप्रमाण और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तथा इनका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने सर्वलोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष त्रसप्रकृतियोंका और आतपका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने सर्वलोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । दो आयुओंकी अपेक्षा स्पर्शन सामान्य एकेन्द्रियोंके समान है । इसी प्रकार बादर पृथिवीकायिक, बादर जलकायिक और बादर अग्निकायिक जीवोंमें जानना चाहिए । बादर पृथिवीकायिक पर्यात, बादर जलकायिक पर्याप्त और बादर अग्निकायिक पर्याप्त जीवोंमें एकेद्रिय संयुक्त सब प्रकृतियांका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तथा उससंयुक्त प्रकृतियोंका और आतपका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार वायुकायिक जीवोंमें भी जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि जहाँपर लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण स्पशन कहा है, वहाँपर लोकके संख्यातवें भागप्रमाण स्पशन करना चाहिए।
१ आ प्रतौ 'लोगस्स असंखे० । अणु' इति पाठः । २ 'तेउ० ओधं पदं । बादरपुटवि०' इति पाठः ।
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