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फोसणपरूवणा १८. वणफदि-णियोदेसु एइंदियभंगो। णवरि यम्हि लोगस्स संखेंजदिभागो तम्हि लोगस्स असंखेंजदिभागो कादव्यो । बादरवणप्फदि-बादरणियोदाणं पजत्तापजताणं एइंदियपगदीणं उक० अणु० सव्वलो० । तससंजुत्ताणं उक्क० अणु० खेत्तभंगो । उज्जो०-जस० उक्क० अणु० सत्तचों सव्यबादराणं च । बादर० उक्क० खेत्तभंगो । अणु० जसगित्तिभंगो । बादरवणफदिपत्ते० बादरपुढविभंगो ।
विशेषार्थ-पृथिवीकायिक आदि तीनमें भी वादर पर्याप्त जीव उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करते हैं, इसलिए इनमें एकेन्द्रिय प्रकृतियोंका उत्कृष्ट प्रदेशवन्ध करनेवाले जीवोंका पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। साथ ही यह बन्ध मारणान्तिक समुद्धातके समय भी सम्भव है, इसलिए इस अपेक्षासे सर्व लोकप्रमाण स्पर्शन भी कहा है। इनका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनवाले जीवोंका सर्व लोकप्रमाण स्पर्शन है,यह स्पष्ट ही है। इनमें आतपसहित शेप प्रकृतियोंका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्भात करते समय नहीं होता, इसलिए इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है । यद्यपि आतपका एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्भात करते समय उत्कृष्ट प्रदेशवन्ध सम्भव है,पर ऐसे जीव बादर पृथिवीकायिक पर्याप्तकोंमें ही मारणान्तिक समुद्धात करते हैं, इसलिए इस अपेक्षासे भी उक्त स्पर्शनके प्राप्त होनेमें कोई बाधा नहीं आती। तथा इनका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध पृथिवीकायिक आदि सब करते हैं, इसलिए इनके इस पदवालोंका सर्व लोकप्रमाण म्पर्शन कहा है। दो आयुओंकी अपेक्षा जो प्ररूपणा एकेन्द्रियोंमें कर आये हैं वह यहाँ भी बन जाती है, इसलिए इसे उनके समान जाननेकी सूचना की है। बादर पृथिवीकायिक आदि तीनमें सब प्ररूपणा पृथिवीकायिक आदि तीनके समान घटित हो जाती है, इसलिए इसे उनके समान जाननेकी सूचना की है । वादर पृथिवीकायिक पर्याप्त आदि तीनोंमें एकेन्द्रियसंयुक्त प्रकृतियोंके दोनों पद मारणान्तिक समुद्भातके समय भी सम्भव हैं, इसलिए इनके दोनों पदीकी अपेक्षा सर्व लोकप्रमाण स्पर्शन कहा है। तथा त्रससंयुक्त और आतपका बन्ध करनेवाले उक्त जीवोंका लोक असंख्यातवें भागसे अधिक स्पर्शन किसी भी अवस्थामें सम्भव नहीं है, इसलिए यह स्पर्शन उक्त प्रमाण कहा है। वायकायिक और उनके पर्याप्त व अपर्याप्त जीवोंमें सब स्पर्शन प्रथिवीकायिक और उनके पर्याप्त व अपर्याप्त जीवोंके समान बन जानेसे इसी प्रकार वायुकायिक जीवोंक जानना चाहिए,यह कहा है। मात्र उनसे इनमें जितनी विशेषता है,उसका अलगसे उल्लेख किया है।
१८ वनस्पतिकायिक और निगोद जीवों में एकेन्द्रियोंके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि जहाँ पर लोकके संख्यातवें भागप्रमाण स्पर्शन कहा है, वहाँ पर लोकके असंख्यातवं भागप्रमाण कहना चाहिए । बादर वनस्पतिकायिक और वादर निगोद तथा इनके पर्याप्त और अपर्याप्त जीवोंमें एकेन्द्रिय प्रकृतियोंका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने सर्व लोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। प्रससंयुक्त प्रकृतियोंका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । उद्योत और यश कीर्तिका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने सनालीके कुछ कम सात बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सब बादरोंमें उद्योत और यशःकोतिका भङ्ग इसी प्रकार जानना चाहिए । बादर प्रकृतिका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। तथा अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन यश कीर्तिके समान है। बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर जीवोंमें बादर पृथिवीकायिक जीवोंके समान भङ्ग है।
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