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________________ जीवसमुदाहारे अप्पाबहुअं ३१५ आहारमिस्स० वेउब्वियमिस्स भंगो। णवरि संखेंजगुणं कादव्वं । कम्मइग० सव्वपगदीणं सव्वत्थोवा उक्क०पदे०. जीवा । जह०पदे०ब जीवा अणंतगु० । अजह०मणु०पदेब जीवा असं०गु० । देवगदि०४ ओघं । णवरि संखेंजगुणं कादव्वं । तित्थयरं वेउव्वियमिस्स०भंगो। ३५१. इत्थिवेदगे पंचणाणावरणीय-थीणगि०३-सादासाद०-मिच्छ०-अणंताणु०४इत्थि०-णqस०-चदुसंठा-पंचसंघ०-पर-उस्सा०-आदाउजो०-पसत्थ०-पज० - थिर-सुभसुभग सुस्सर-आर्दै०-दोगोद०-पंचंत० सम्वत्थोवा जह०पदे०७० जीवा । उक०पदे०७० जीवा असं०गु० । अजह०मणु०पदे०६० जी० असं०गु०। सेसाणं सव्वत्थोवा उक्क०पदे०ब जीवा । जह०पदे०ब जीवा असं०गु० । अजह०मणु०पदे०० असं०गु० । आहारदुगं ओघं । तित्थ० सव्वत्थोवा जंह० पदेब जीवा । उक्क०पदे०4 जीवा संखेंजगु० । अजह मणु०पदे०० जीवा संखेंजगुः । एवं पुरिसवेदगेसु । णवरि आहारदुगं तित्थ० ओघभंगो। णबुस० ओघं । णवरि देवगदि-वेउवि०वेउवि०अंगो०-देवाणु० सव्वत्थोवा उक्क० पदेब जीवा। जह०पदेब जीवा असं०गु० । अजह०मणु०पदे०ब जीवा असंखेंगु० । तित्थय० सव्वत्थोवा जह० अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंमें वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि संख्यातगुणा करना चाहिए । कार्मणकाययोगी जीवोंमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । उनसे जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव अनन्तगुणे हैं। उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । देवगतिचतुष्कका भङ्ग ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि संख्यातगुणा करना चाहिए । तीर्थङ्करप्रकृतिका भङ्ग वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंके समान है। ३५१. स्त्रीवेदी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरणीय, स्त्यानगृद्वित्रिक, सातावेदनीय, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धीचतुष्क, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, चार संस्थान, पाँच संहनन, परघात, प, उद्योत, प्रशस्त विहायोगति, पर्याप्त, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, दो गोत्र और पाँच अन्तरायके जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे उत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। शेष प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। आहारकद्विकका भङ्ग ओघके समान है। तीर्थङ्कर प्रकृतिके जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । उनसे उत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । इसी प्रकार पुरुषवेदवाले जीवोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि आहारकद्विक और तीर्थङ्करप्रकृतिका भङ्ग ओघके समान है। नपुंसकवेदवाले जीवोंमें ओघके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि देवगति, वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिकशरीर आङ्गो. पाङ्ग और देवगत्यानुपूर्वीके उत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। तीर्थङ्कर प्रकृतिके जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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