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________________ महाबंधे पदेसबंधाहियारे ३४६. पंचमण-तिण्णिवचि० मणुसग० - देवग०-वेउवि०-तेजा-क०-वेउवि०अंगो०-दोआणु० सव्वत्थोवा जह० पदेय जीवा । उक्क० पदेय जीवा असं०गु० । अजह मणु०पदेय जीवा असं०गु० । आहारदुर्ग तित्थयरं ओघं । सेसाणं सबत्थोवा उक० पदे०७० जीवा । जह०पदे०७० असं०गु०। अजह ०मणु०पदेब जीवा असं०गु०। वचिजोगि०-असचमोसवचि० सव्यपगदीणं सव्वत्थोवा उक०पदे०बं० जीवा। जह० पदे०७० जीवा असं०गु०। अजह मणुपदेव जीवा असं०गु० । आहारदुगं तित्थ० ओघ । ३५०. कायजो०-ओरालियका-ओरालियमि० ओषभंगो। वेउब्धियका० देवोघं । वेउब्बियमि० छदंसणा०-बारसक०-सत्तणोक० सव्वत्थोवा उक्क० पदे०२० जीवा । जह०पदेव जीवा असं०गु० । अजह०मणु० पदेय जीवा असं०गु० । एवं सबपगदीणं । णवरि मणुसगदि-मणुसाणु०-उच्चा० सव्वत्थोवा जह० पदे०व० जीवा । उक्क० पदे०२० जीवा असं०गु । अजह ०मणु०पदे०ब जीवा असं०गु० । तित्थ० सव्वत्थोवा उक्क ०पदे०७० जीवा । जह०पदे०व० जीवा संखेंजगु० । अजह०मणुक०पदे०६० जीवा संखेंजगुणा । आहारकायजोगीसु सव्वपगदीणं सव्वत्थोवा जह०पदे०वं जीवा । उक० पदे०व० संखेंजगु० । अजह०मणु० पदे०७० जीवा संखेंजगु० । ३४६. पाँच मनोयोगी और तीन वचनयोगी जीवों में मनुष्यगति, देवगति, वैक्रियिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वैक्रियिकशरीर आङ्गोपाङ्ग और दो आनुपूर्वीके जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे उत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । उससे अजघन्य अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। आहारकद्विक और तीर्थङ्कर प्रकृतिका भङ्ग ओघके समान है। शेष प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेश के बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । उनसे जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। वचनयोगी और असत्यमृपावचनयोगी जीवोंमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । उनसे जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । आहारकद्विक और तीर्थङ्करप्रकृतिका भङ्ग ओघके समान है। ३५०. काययोगी, औदारिककाययोगी और औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें ओघके समान भङ्ग है । वैक्रियिककाययोगी जीवामें सामान्य देवोंके समान भङ्ग है। वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवों में छह दर्शनावरण, बारह कषाय और सात नोकषायोंके उत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट प्रदेशांके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार सब प्रकृतियोंकी अपेक्षा अल्पबहुत्व जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रके जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । उनसे उत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट प्रदेशांके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। तीर्थङ्कर प्रकृतिके उत्कृष्ट प्रदेशों के बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । उनसे जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । आहारककाययोगी जीवोंमें सब प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे उत्कृष्ट प्रदेशों के बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे अजघन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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