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________________ ३१६ महायंधे पदेसबंधाहियारे पदेब जीवा । उक्क० पदेष जीवा संखेंजगुणा । अजह०मणु० पदेय जीवा संखेंजगुणा । ३५२. कोध-माण-माय-लोभकसाईसु ओघभंगो। मदि-सुद० ओघभंगो। णवरि देवगदि०४ णिरयगदिभंगो। विभंग. देवगदि०४ सम्वत्थोवा जह० पदे०५० जीवा । उक्क०पदेब जीवा असंगु० । अजह०मणु०पदे०७० जीवा असं०गु० । सेसाणं सव्वपगदीणं सव्वत्थोवा उक्क०पदे०७०' जीवा । जह० पदे०० जीवा असंखेंजगुणा । अजह०मणु०पदे०७० जीवा असंखेंजगुणा। ३५३, आभिणि सुद-ओधिणाणीसुपंचणाणावरणीय-चदुदंस०-सादाचदुसंजल०पुरिस०-देवाउ०-जसगि०-उच्चा०-पंचंत० सव्वत्थोवा उक्क० पदे०व० जीवा। जह०पदेय जीवा असंखेंजगु० । अजह०मणु०पदेच जीवा असंखेंजगु० । मणुसाउगं णिरयभंगो। आहारदुगं तित्थ० ओघभंगो। सेसाणं सव्वपगदीणं सव्वत्थोवा जह०पदे०० जीवा। उक्क० पदे०२० जीवा असंखेंजगु० । अजह ०मणु० पदेब जीवा असंखेंजगुणा । एवं ओधिदंस०-सम्मादि०-खइग०-उवसम० । णवरि उवसम० तित्थय० सव्वत्थोवा जह०पदे०७० जीवा । उक्क०पदे०७० जीवा संखेंजगुणा । अजह०मणु०प०पं जीवा संखेंजगुणा। उत्कृष्ट प्रदेशांके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। ३५२. क्रोधकषायवाले, मानकषायवाले, मायाकपायवाले और लोभकपायवाले जीवों में ओघके समान भङ्ग है। मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंमें ओघके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि देवगतिचतुष्कका भङ्ग नरकगतिके समान है। विभङ्गज्ञानी जीवोंमें देवगतिचतुष्कके जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे उत्कृष्ट प्रदेशांके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। शेप सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे जघन्य प्रदेशांके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। ३५३. आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरणीय, चार दर्शनावरणीय, सातावेदनीय, चार संज्वलन, पुरुपवेद, देवायु, यश-कीर्ति, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुण हैं । उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। मनुष्यायुका भङ्ग नारकियोंके समान है। आहारकद्विक और तीर्थङ्कर प्रकृतिका भङ्ग ओघके समान है। शेष सब प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । उनसे उत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । इसी प्रकार अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि और उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंमें तीर्थङ्करप्रकृतिके जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव १. ता०प्रतौ 'सेसाणं सव्वपगदीणं सव्वत्थोवा णं (१) उक्क०पदे.' आ०प्रतौ सेसाणं सव्वपगदीणं सव्वत्थोवाण उक्क०पदे००' इति पाठः । २. आ० प्रती 'पंचणाणावरणीय सव्वत्थोवा' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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