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________________ अज्झवसाणसमुदाहारे अप्पाबहुगं णवण्ठं दंसणा. जोगट्ठाणाणि । थीणगिद्धि०३ पदेसबंध विसे० । छदंस० पदेसबंध० विसे । सव्वत्थोवाणि मिच्छ० सोलसकसायाणं जोगट्ठाणाणि । मिच्छ०-अणंताणु०४ पदेसबंध० विसे । बारसक० पदेसबंध. विसे । सव्वत्थोवाणि णवण्हं णोकसा० जोगट्ठाणाणि । इत्थि०-णवंस० पदेसबंध. विसे० । सत्तणोक० पदेसबंध० विसे । एवं सव्वणेरइय-तिरिक्ख-पंचिंदियतिरिक्ख०३ देवा याव उवरिमगेवजा त्ति वेउवि०असंजद०-पंचले०-वेदग० । णवरि एदेसु किंचि विसेसो। तिरिक्खेसु सव्वत्थोवाणि मिच्छ०-सोलसक. जोगट्ठाणाणि । मिच्छ०-अणंताणु०४ पदेसबंध० विसे० । अपचक्खाण०४ पदेसबंध. विसे० । अट्ठक० पदेसबंध० विसे० । एवं तेउ-पम्माणं । णवरि अपचक्खाण०४ पदेसबंध० विसे० । पच्चक्खाण०४ पदेसबंध० विसे० । चदुसंज० पदेसबंध० विसे० । एवं वेदग। ३३८. सव्वअपजत्ताणं तसाणं थावराणं च सव्वएइंदिय-विगलिं०-पंचकायाणं च सव्वपगदीणं च सव्वत्थोवाणि जोगट्ठाणाणि । पदेसबंध० विसे । एवं ओरालियमि०मदि-सुद-विभंगे. अब्भव०-मिच्छादि०-असण्णि त्ति । णवरि ओरालियमिस्स० देवगदिसबसे स्तोक हैं। उनसे स्त्यानगृद्धित्रिकके प्रदेशबन्धस्थान विशेष अधिक हैं। उनसे छह दर्शनावरणके प्रदेशबन्धस्थान विशेष अधिक हैं । मिथ्यात्व और सोलह कषायोंके योगस्थान सबसे स्तोक हैं। उनसे मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके प्रदेशबन्धस्थान विशेष अधिक हैं। उनसे बारह कषायोंके प्रदेशबन्धस्थान विशेष अधिक हैं। नौ नोकषायोंके योगस्थान सबसे स्तोक हैं। उनसे स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके प्रदेशबन्धस्थान विशेष अधिक हैं। उनसे सात नोकषायोंके प्रदेशबन्धस्थान विशेष अधिक हैं। इसी प्रकार सब नारकी, सामान्य तिर्यश्च, पश्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिक, सामान्य देव, उपरिम अवेयक तकके देव, वैक्रियिककाययोगी, असंयत, पाँच लेश्यावाले और वेदकसम्यग्दृष्टि जीवों में जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इन मार्गणाओंमें सामान्य नारकियोंसे कुछ विशेष है। यथा-सामान्य तिर्यश्चोंमें मिथ्यात्व और सोलह कषायोंके योगस्थान सबसे स्तोक हैं। उनसे मिथ्यात्व और अनन्तानुवन्धीचतुष्कके प्रदेशबन्धस्थान विशेष अधिक हैं। उनसे अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कके प्रदेशबन्धस्थान विशेष अधिक हैं। उनसे आठ कषायोंके प्रदेशबन्धस्थान विशेष अधिक हैं। इसी प्रकार पीत और पद्मलेश्यामें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि अप्रत्याख्यानावरण चतुष्कके प्रदेशबन्धस्थान विशेष अधिक हैं। उनसे प्रत्याख्यानावरणचतुष्कके प्रदेशबन्धस्थान विशेप अधिक हैं। उनसे चार संज्वलनोंके प्रदेशबन्धस्थान विशेष अधिक हैं। इसी प्रकार वेदक सम्यग्दृष्टि जीवों में जानना चाहिए। __ ३३८. त्रस और स्थावर सब अपर्याप्तक, सब एकेन्द्रिय, सब विकलेन्द्रिय और पाँच स्थावरकायिक जीवोंमें सब प्रकृतियोंके योगस्थान सबसे स्तोक हैं । उनसे प्रदेशबन्धस्थान विशेष अधिक हैं । इसी प्रकार औदारिकमिश्रकाययोगी, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, विभङ्गज्ञानी, अभव्य, मिथ्यादृष्टि और असंज्ञी जीवामें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि औदारिकमिश्रकाययोगी जीवों में देवगतिपञ्चकका अल्पबहुत्व नहीं है। इसी प्रकार वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवों में जानना १. ता०प्रतौ एवं वेदग० सव्वअपजन्तगाणं' इति पाठः । ३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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